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हरियाणवी सिनेमा के 98% फिल्ममेकर्स जुगाड़बाजी में लगे रहते हैं, भाई-भतीजाबाद बहुत करते हैं : यशपाल शर्मा

हरियाणवी सिनेमा खतरनाक दौर से गुजर रहा, 'दादा लखमी'वाले यशपाल शर्मा का Exclusive Interview

अमिताभ बुधौलिया, मुंबई। यशपाल शर्मा उन अभिनेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने बॉलीवुड से लेकर साउथ और हरियाणवी सिनेमा सब में जबर्दस्त काम किया; शिद्दत से किया,दिल से किया। लगान, गंगाजल, अपहरण, वेल्कम टू सज्जनपुर, राउडी राठौर और वेब सीरीज कालकूट जैसे लोकप्रिय प्रोजेक्ट कर चुके यशपाल शर्मा को अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाम मिला; पहचान मिली, तो वो है हरियाणवी फिल्म-दादा लखमी। यशपाल शर्मा ने हरियाणवी सिनेमा के भूत-वर्तमान और भविष्य सहित ‘दादा लखमी’के निर्माण तक peoplesupdate.com से अपने अनुभव शेयर किए…

हरियाणवी सिनेमा के भविष्य को लेकर यशपाल शर्मा की चिंता

यशपाल शर्मा कहते हैं कि हरियाणवी सिनेमा खतरनाक दौर से गुजर रहा है। हालांकि कुछ सुधार भी हुए हैं,पिछले 2-3 सालों में। लेकिन ऑडियंस हॉल के अंदर नहीं पहुंच पा रही है। बहुत टाइम के बाद ‘दादा लखमी’ जो मेरी फिल्म थी, उसमें शो हाउसफुल देखे गए। लेकिन उसमें भी जितना लोगों को देखना चाहिए था,दूर-दराज के गांवों से आकर वो नहीं देख पाए। क्योंकि सबको लगता है कि उन्हें फिल्म की यूट्यूब लिंक मिल जाए या किसी OTT पर देखने को मिल जाए। हरियाणवी सिनेमा में ऑडियंस की बहुत कमी है। इस कमी का कारण यही है कि हम अपनी फिल्मों में क्वालिटी नहीं ला पाए।

हरियाणवी सिनेमा के 98% फिल्ममेकर्स जुगाड़बाजी से फिल्म बना रहें

यशपाल शर्मा ने बगैर लागलपेट के दो टूक कहा कि हरियाणवी सिनेमा के 98% फिल्ममेकर्स जुगाड़बाजी में लगे रहते हैं। उनको परफेक्शन में कोई दिलचस्पी नहीं है। वो बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहते हैं। इक्का-दुक्का कुछ फिल्म मेकर्स को छोड़ दें, तो…जैसे राजीव भाटिया, संदीप शर्मा, संदीप बसवाना, हरिओम कौशिक…कुछ लोग दिल से जुड़े हुए हैं। हम लोगों में भी कुछ कमियां रह जाती हैं कि हम परफेक्शन की तरफ जाते-जाते रुक जाते हैं। उसके कुछ कारण और भी हैं कि हम भाई-भतीजाबाद बहुत करते हैं।

दादा लखमी हरियाणवी सिनेमा में एक क्रांति

दादा लखमी को हरियाणवी सिनेमा में एक क्रांति कह सकते हैं। इस फिल्म की खासियत यह थी कि इसको 73 इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुके हैं। इसको बेस्ट हरियाणवी फिल्म का नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है। यह काफी सराही गई। यह बहुत बड़ी उपलब्धि रही। इसके बाद ‘फौजा’ आई। हालांकि उसकी कहानी में थोड़े सुधार की जरूरत थी। उसका बहुत बुरा हश्र हुआ। खैर,हरियाणवी सिनेमा की शुरुआत में ‘चंद्रावल’ ने कमर्शियली सारे रिकॉर्ड तोड़े थे। ये 84 की बात है, तब मोबाइल नहीं थे। मल्टीप्लेक्स नहीं थे। हालांकि जयंत प्रभाकर ने इसके बाद एक-दो फिल्में और बनाईं, मगर वो नहीं चलीं। दादा लखमी एक कल्ट फिल्म बन चुकी है, जो सदियों तक देखी जाएगी।

अभिनेता और निर्माता-निर्देशक यशपाल शर्मा का पूरा वीडियो इंटरव्यू हमारे यूट्यूब चैनल पर देखें…

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