
हेग। पिछले कुछ महीनों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) में अचानक आई तेजी एवं प्रगति ने समाज पर इसके संभावित हानिकारक प्रभावों को लेकर चिंता खड़ी कर दी है। AI से न सिर्फ लोगों की नौकरियां और सृजनात्मकता खतरे में पड़ गई है, बल्कि यदि इन स्मार्ट मशीनों का युद्ध में इस्तेमाल किया गया तो उसके भयावह परिणाम हो सकते हैं। इस खतरे का समाधान करने के लिए सैन्य क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विषय पर पहली ग्लोबल समिट पिछले हफ्ते आयोजित की गई।
समिट में रूस को बुलावा नहीं
इस समिट ने दुनिया को देशों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जिम्मेदारी से इस्तेमाल को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की बात सामने आई। हेग में आयोजित इस समिट की मेजबानी नीदरलैंड और दक्षिण कोरिया ने की। इस समिट में चीन सहित दुनिया के 60 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, रूस को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया। यूक्रेन भी युद्ध के चलते इस समिट में उपस्थित नहीं हो सका।
जवाबदेह AI के इस्तेमाल का आह्वान
इस समिट में इजराइल को छोड़कर अन्य सभी देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सेना के लिए ऐसी एआई (AI) मशीनें विकसित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है, जो अंतर्राष्ट्रीय वैध दायित्वों के अनुरूप हों और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, स्थिरता और जवाबदेही का उल्लंघन नहीं करती हों। अमेरिका के हथियार नियंत्रण मामलों के अंडर सेक्रेटरी बोन्नी जेनकिन्स ने सेना में जवाबदेह एआई के उपयोग का आह्वान किया। समिट में चीन की ओर से मौजूद प्रतिनिधि जिआन तान ने कहा कि दुनिया के देशों को एआई के जरिए सैन्य आधिपत्य जमाने की कोशिशों का विरोध करना चाहिए तथा इसके लिए यूनाइटेड नेशंस के माध्यम से कार्य करना चाहिए।
चीन ने कहा- यूएन के माध्यम से हो काम
समिट में चीन के प्रतिनिधि जियान टैन ने कहा कि देशों को एआई के माध्यम से पूर्ण सैन्य लाभ और आधिपत्य की मांग का विरोध करना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से काम करना चाहिए। अन्य मुद्दों पर हस्ताक्षर करने वालों ने मिलिट्री एआई की विश्वसनीयता, इसके उपयोग के अनपेक्षित परिणाम, इसकी वृद्धि के जोखिम और इसके निर्णय लेने की क्षमता में मनुष्यों के हस्तक्षेप पर सहमति जताई।
यह भी पढ़ें कम होगी गेहूं और आटे की कीमत; मोदी सरकार खुले मार्केट में बेचेगी 20 लाख टन गेहूं