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आठ महीने में मीजल्स-रुबेला के 58 मरीज मिले लेकिन वैक्सीनेशन की विशेष तकनीक से नहीं हुआ आउट ब्रेक

भोपाल में चलाया विशेष एमआर कैम्पेन, शहर को आठ ब्लॉक में बांट कर हुआ काम

भोपाल। राजधानी में इस साल मीजल्स-रुबेला (एमआर)के पांच केस सामने आने से स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। बीते आठ महीने में शहर में मीजल्स रूबैला के 58 मामले आ चुके हैं। हालांकि इतने मामले सामने आने के बावजूद शहर में अब तक आउटब्रेक के हालात नहीं बन पाए। दरअसल, मीजल्स रूबैला को रोकने के लिए राजधानी में विशेष रूप एमआर वैक्सीनेशन केम्पैन चलाया गया। शहर को आठ ब्लॉक में बांट कर चलाए गए इस कैम्पैन का ही नतीजा था कि राजधानी में एमआर के मामले बढ़ नहीं सके। अब प्रदेश में मीजल्स-रुबेला (एमआर) के निर्मूलन के लिए दिसंबर 2023 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

ऐसे किया गया वैक्सीनेशन

सामान्य रूप से एमआर वैक्सीनेशन कैम्पेन को जिला टीकाकरण अधिकारी द्वारा चलाया जाता है। इसमें पूरे शहर में एक साथ कैम्पैन चलाया जाता है। लेकिन राजधानी में कैम्पैन को आठ ब्लॉक में बांटा गया। हर ब्लॉक में एक मेडिकल ऑफिसर नियुक्त कर उसे उस ब्लॉक में वैक्सीनेशन की जिम्मेदारी दी गई। हर मेडिकल ऑफिसर को टीकाकरण की टीम भी दी गई।

यह हुआ फायदा

आठ ब्लॉक और आठ मेडिकल ऑफिसर होने से हर अधिकारी को सीमित क्षेत्र में ही काम करना पड़ा। इससे कहीं मरीज मिलने पर उस तक पहुंचना और उसके आसपास के पचास घरों में सर्वे का काम आसान हो गया। यहां तत्काल सर्वेक्षण कर वैक्सीनेशन किया गया। परंपरागत तरीके से पूरे शहर में एक साथ वैक्सीनेशन करेने से लोगों तक पहुंच कम हो जाती है। हाल ही में 9 साल की एक बच्ची को बुखार आने के साथ ही शरीर पर दाने भी उभर आए थे। अंदेशा हुआ तो उसकी जांच कराई गई। जांच रिपोर्ट में मीजल्स-रुबेला की पुष्टि हुई है। अब बच्ची के घर के आसपास के 50 घरों का सर्वे किया गया।

चार साल से नहीं हुआ आउटब्रेक

मीजल्स-रुबेला को जड़ से मिटाने के लिए जनवरी 2019 से अभियान शुरू किया गया है। विभाग के अधिकारियों का दावा है कि बीते चार सालों में आउट ब्रेक की स्थिति नहीं बनी है। यानी किसी भी क्षेत्र में 5 या उससे अधिक मरीज नहीं मिले हैं। हालांकि, इस दौरान अधिकांश समय कोरोनाकाल का ही बीता है। ऐसे में लोगों ने ना सिर्फ साफ-सफाई बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखा है।

यह होते हैं दुष्प्रभाव

यह एक तरह का वायरस है जो एक से दूसरे में फैलता है। ऐसे में एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर ऐसे बच्चे और बड़े जिनको मीजल्स का टीका नहीं लगा है संक्रमित जरूर होते हैं।

विटामिन ए की कमी होने से नजर कमजोर हो जाती है। गंभीर स्थिति में आंखों में छाला पड़ने और आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है।

दाने शरीर के ऊपर ही नहीं अंदर सांस की नली, आंत और फेफड़े में भी होते हैं। ऐसे में ठीक होने के बाद भी खाना पचाने की क्षमता घट जाती है। बार-बार निमोनिया की आशंका।

बुखार इतना तेज होता है कि मरीज के दिमाग पर चढ़ने की आशंका बनी रहती है। सिरदर्द, उल्टी, झटके और चक्कर आने की शिकायत।

बच्चा ऊपर से स्वस्थ दिखता है, लेकिन खाना नहीं पचने, दस्त और फेंफड़ों में संक्रमण के चलते धीरे-धीरे कुपोषित हो जाता है।

वर्जन

एमआर कैम्पेन के जरिए शहर को अलग अलग क्षेत्रों में बांट कर काम किया गया। इससे आउटब्रेक जैसी स्थिति नहीं है। प्रोटोकॉल के तहत उक्त क्षेत्र में सर्वे कराया जा रहा है। ताकि, संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। -डॉ. कमलेश अहिरवार, जिला टीकाकरण अधिकारी

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