दीपावली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा करने की परंपरा है। इस दिन अन्नकूट का प्रसाद बनाया जाता है और गोवर्धन पूजा की जाती है। गोबर से भगवान गोवर्धन बनाने के साथ ही महिलाएं गाय की पूजा करती हैं। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाकर श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है। इन पकवानों को ‘अन्नकूट’ कहा जाता है।
क्या है अन्नकूट ?
इस दिन घर के आंगन, छत या बालकनी में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनको अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है और गोवर्धन पर्वत को भी पूजा जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट बनाने और भगवान को इसका भोग लगाने का विशेष महत्त्व है।
गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व
गोवर्धन पूजा सुबह और शाम दो समय की जाती है। सुबह में जहां भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की धूप, फल, फूल, खील-खिलौने, मिष्ठान आदि से पूजा-अर्चना और कथा-आरती करते हैं। वहीं शाम को इनको अन्नकूट का भोग लगाकर आरती की जाती है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रात: 06 बजकर 36 मिनट से प्रात: 08 बजकर 47 मिनट तक है। शाम की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 03 बजकर 22 मिनट से शाम 05 बजकर 33 मिनट तक है।
गोवर्धन पूजा करने की वजह
मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्री कृष्ण के कहने पर बृजवासियों ने भगवान इन्द्र की जगह पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। क्योंकि गायों को चारा गोवर्धन पर्वत से मिलता था और गायें बृजवासियों के जीवन-यापन का जरिया थीं। तब इंद्रदेव ने नाराज होकर मूसलाधार बारिश की थी और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर बृजवासियों की मदद की थी और उनको पर्वत के नीचे सुरक्षा प्रदान की थी। तब से ही भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाए हुए रूप की पूजा की जाती है। जिसके तहत गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण दोनों की पूजा होती है।