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कचरे को तरीके से फेंकना कोई स्विट्ज़रलैंड और नीदरलैंड से सीखे

मेरी यूरोप यात्रा : कचरा प्रबंधन हो तो ऐसा कि लोग कहें, ये है जागरूक जनता

“मैं इस समय यूरोप यात्रा पर हूं। स्विट्ज़रलैंड, नीदरलैंड आदि शहरों की आबो-हवा; जीवनशैली और आम व्यवस्थाओं को बारीकी से देख-परख रहा हूं। पिछले कुछ सालों से हमारे देश में कचरा प्रबंधन को लेकर काफी काम हुआ है। हालांकि इस मामले में हमें यूरोपीय देशों से सबक सीखना चाहिए।”

वेस्ट मैनेजमेंट(waste management) मतलब ‘कचरा प्रबंधन’ हमारे देश में एक बड़ी समस्या है। सरकार और अन्य संस्थाओं के जागरुकता अभियानों के बावजूद अब भी बहुत खामियां हैं। ख़ासकर; घरों से निकले कचरे की बात करें, तो अब भी ज्यादातर लोग सभी तरह का कूड़ा; चाहे वह फ़ूड वेस्ट हो, प्लास्टिक वेस्ट हो या अन्य; एक ही कूड़ेदान में फेंक देते हैं।

‘गाड़ी वाला आया-घर से कचरा निकाल’ गाना बजाते हुए ‘कचरा गाड़ी’ आने पर लोग एक ही थैले या डिब्बे में सभी तरह का कचरा भरकर फेंक देते हैं।

अब गाड़ी की ही बात कर लें, तो इसमें गीला कचरा, प्लास्टिक और अन्य कूड़े के लिए एक ही कंटेनर को दो भागों में बांटा गया होता है- हरा और नीला। यह और बात है कि दोनों ही कंटेनर में अकसर हर तरीके का कूड़ा डाल दिया जाता है। धीरे-धीरे कूड़े का पहाड़ खड़ा होता जाता है। लाख प्रयासों के बावजूद भी कूड़े को पूरी तरह से मशीन द्वारा अलग करके रिसाइकल करना मुश्किल हो जाता है। कचरे के ये पहाड़ वातावरण से लेकर सेहत तक के लिए खतरनाक हैं।

सांस्कृतिक रूप से पश्चिम की सभ्यता के विरोधाभाषी होने पर भी हम उनसे कुछ चीजें सीख सकते हैं। अभी हम कूड़ा प्रबंधन पर विमर्श कर रहे हैं, तो इसके लिए यूरोपीय देशों द्वारा अपनाए जा रहे तौर-तरीकों को देखते हैं। मैंने स्विट्ज़रलैंड में देखा है कि यहां घरों से निकले कूड़े को कितनी ज़िम्मेदारी से तीन अलग-अलग कूड़ेदान में भरा जाता है।

आइए जानते हैं कि ये तीन तरह के कूड़ेदान कौन-कौन हैं? पहला-ग्रीन वेस्ट यानी घरों से या गार्डन से निकलने वाला हरा कूड़ा। इसमें घास-पत्तियां, छंटाई किए हुए पौधों और पेड़ों से निकला कूड़ा शामिल है। दूसरा-फूड वेस्ट यानी बचा हुआ खाना। तीसरा-प्लास्टिक एवं पेपर वेस्ट। तीनों को अलग-अलग कूड़ेदान में भरा जाता है।

यह काम सभी घरों के लोग बड़ी जिम्मेदारी से और बिना किसी बोझिल मन से करते हैं। कचरा गाड़ी भी अलग-अलग कूड़े के लिए पृथक-पृथक दिन आती है। यानी जिस दिन हरे कचरे वाली गाड़ी आएगी, उस दिन सिर्फ हरा कूड़ा डाला जाएगा। बाकी के दोनों तरह के कचरे उस गाड़ी में नहीं जाएंगे। जिस दिन फ़ूड वेस्ट या प्लास्टिक एवं अन्य वेस्ट की गाड़ी आएगी, उसमें वही कूड़ा डाला जाएगा।
कूड़ा प्रबंधन में बेहतर काम करने वाला एक और यूरोपीय देश है नीदरलैंड। यहां सभी घरों में कूड़े के अलग-अलग डिब्बे दिए गए हैं। यहां कुछ ऐसी चीजें भी देखी गई हैं, जो खास बनाती हैं। कुछ कॉलोनी के बीच में या किसी कौने में कूड़ेदान के लिए विशेष जगह भी होती है।

अगर आपको पेपर वेस्ट डालना है, तो अलग कूड़ेदान मिलेंगे। कांच की बोतल एवं इसी किस्म के अन्य सामान के लिए विशेष कूड़ेदान रखे हुए हैं। फटे-पुराने और अनुपयोगी कपड़ों के लिए एक अलग कलेक्शन पॉइंट बना है। इनमें भी लोग कपड़ों को ठीक से तह करके और सलीके से कलेक्शन बॉक्स में डालते हैं। इन्हें रिसाइकल करके अलग-अलग तरीके से प्रयोग में लिया जाता है। बीयर की केन एवं वाइन की बोतलों को तो शॉपिंग मार्ट में देने पर कुछ सेंट(Cent) रिवार्ड में मिलते हैं।

बात यही खत्म नहीं होती! क्या घरों से सिर्फ़ इतना ही कूड़ा निकलता है? नहीं, यह तो वह कूड़ा है; जो रोज़ाना निकलता है। कुछ कूड़े ऐसे हैं, जो कभी-कभी और बड़ी मात्रा में होते हैं। जैसे-खराब हो चुका सोफा या बेड, कुर्सी-टेबल या अन्य ऐसे ही बड़े मैटेरियल; जो वेस्ट में तब्दील हो गए हैं। इनके लिए एक निश्चित स्थान बना है। यहां से इस कचरे को म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन रिसाइकल पॉइंट तक ले जाता है।

इन तरीकों से घर से निकलने वाला लगभग सभी तरह का कूड़ा बेहतरीन तरीके से न सिर्फ़ एकत्रित किया जाता है, बल्कि उनका पुनः उपयोग भी रिसाइकल के बाद कर लिया जाता है। यही बातें यूरोप के अन्य देशों में भी लागू होती हैं।

दो बातें जो हमें इसमें से अवश्य सीखनी चाहिए। पहली-अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से समझना और दूसरा-सरकारी तंत्र का सक्रियता से अपना काम करना। हालांकि हमारा देश भी अब जागरूक हो रहा है। कोई इधर-उधर कचरा फेंकता है, तो आश्चर्य नहीं कि कोई व्यक्ति उसे ऐसा करने से रोक दे।

मध्य प्रदेश के इंदौर को लगातार कई वर्षों से ‘सबसे स्वच्छ शहर’ का पुरस्कार मिल रहा है, परन्तु देश के कई शहर आज भी ‘विश्व के सबसे प्रदूषित एवं गंदे शहरों’ में आते हैं। हालांकि ‘स्वच्छ भारत’ का आगाज हो चुका है। अब इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने के लिए जनता का सहयोग उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी। देश विकसित होने के लिए पहले मन का विकसित होना जरूरी है।

– अमित तिवारी (लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता)

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