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मप्र में 182 सीटों पर सिमटा महिला-पुरुषों के वोट का अंतर

विधानसभा चुनाव : चुनावी रिसर्च टीम ने 13 महीने दिन-रात किया काम, पीछे रह गई एंटी इनकम्बेंसी

भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव कई मामलों अनूठा रहा। एंटी इनकम्बेंसी का असर बिल्कुल नहीं था। हां, यह पहला चुनाव था जिसमें महिलाओं से जुड़ा ‘कोर इश्यू’ बना। 182 सीटों पर महिला-पुरुषों के वोटिंग प्रतिशत का अंतर सिमट गया। इस बात पर ज्यादा लोगों का ध्यान ही नहीं गया। भाजपा की सफलता में माइक्रो प्लानिंग, सीएम शिवराज सिंह चौहान की मेहनत, संगठन की कसावट और पूरी टीम का बेहतर तालमेल रहा। चुनावी मुद्दों के रूप में कम्पलीट पैकेज था और सभी सीटों पर केंद्र-राज्य की बड़ी योजनाएं और ‘विजिबल’ विकास कार्य रहे। मतदातओं का इन वजहों से भाजपा से जुड़ाव बना।

100 चुनावों का अनुभव

मप्र विधानसभा चुनाव के नतीजों का यह आकलन चुनावी विश्लेषक योगेश राठौर का है। राठौर मंगलवार को ‘पीपुल्स समाचार’ के ‘गेस्ट इन द न्यूज रूम’ कार्यक्रम में शामिल हुए। राठौर पिछले 25 साल के दौरान मप्र, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमांचल प्रदेश, राजस्थान, यूपी और उत्तराखंड सहित 15 राज्यों में 100 से अधिक चुनाव करा चुके है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रमुख रणनीतिकार रहे दिवंगत प्रमोद महाजन के समय से भाजपा के लिए रिसर्च, सर्वे, रणनीति- प्रबंधन और योजनाकार के रूप में जुड़े राठौर ने इस चुनाव में भी इस पार्टी के लिए अपनी सेवाएं दीं। अनौपचारिक चर्चा में राठौर ने थर्ड पार्टी के असरहीन होने और भाजपा के वोट प्रतिशत का ग्राफ बढ़ने का गणित भी समझाया। एक सवाल पर उन्होंने प्रदेश के 12 मंत्रियों के हार के कारण सहित कांग्रेस की भूलों पर भी रोशनी डाली। यह भी बताया कि कांग्रेस ने जमीनी मेहनत में पीछे रह गई। मान बैठी थी कि हम जीत रहे हैं। यह भी अहसास नहीं करा पाई कि वोटर्स उसे क्यों वोट करें।

कैंडिडेट सेकंडरी हो गए

राठौर ने बताया कि मैंने इस चुनाव में देखा कि कई जगह तो प्रबंधन का काम इतना पुख्ता था कि प्रत्याशी सेकंडरी हो गए। धारा 370, मोदी फैक्टर, हिंदू-सनातन, सीएम फेस, लाड़ली बहना और अन्य विकास योजनाओं का कम्पलीट पैकेज था। जबलपुर, भोपाल की तासीर भी बताई। यह भी बताया कि पिछली बार कैंडिडेट का रिजेक्शन पार्टी पर हावी हो गया था। इस बार बदलाव देख वोटर भी लौट आया।

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