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Manipur Violence: उग्रवादियों के खौफ से छुप-छुपकर सुनने पड़ते थे हिंदी गाने, मणिपुर से पलायन करने वाली एक सिंगर की दास्तां, पीपुल्स एक्सक्लूसिव…

नेपाल की लोकप्रिय सिंगर जुनू गौतम ने बताया, उन्हें क्यों छोड़ना पड़ा था मणिपुर

अमिताभ बुधौलिया, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल)। नेपाली, बांग्ला और गारा (त्रिपुरा) भाषा की कुछ फिल्मों सहित 200 से अधिक एल्बम में अपनी आवाज दे चुकीं नेपाल की चर्चित गायिका जुनू गौतम कभी हिंदी फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहती थीं, लेकिन मणिपुर के उग्रवादियों ने उन्हें दर-दर भटकने पर मजबूर किया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज नेपाल में जाना-पहचाना नाम हैं। जुनू ने Peoplesupdate.com से शेयर की अपने जीवन संघर्ष की कहानी…

मणिपुर में हम लोग छुप-छुपकर हिंदी गाने सुनते थे

करीब 10 साल पहले संगीत की दुनिया में कदम रखने वालीं जुनू बताती हैं- ‘जब हम लोग छोटे थे, तब मणिपुर का सिचुएशन ऐसा था कि हम लोग वहां पर हिंदी गाने नहीं सुन पाते थे। हिंदी और नेपाली गाने गाना एकदम ही वंचित था वहां पर। उस समय में मणिपुर में उग्रवाद बहुत था। वो लोग ऐसा करने से मना करते थे। हिंदी फिल्में भी नहीं चलती थीं। खाली मणिपुरी फिल्में ही चलती थीं। उस समय हम लोग घर में छुप-छुपकर हिंदी और नेपाली गाने सुनते थे और सीखते थे। तब हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचती थी कि हम अपनी भाषा के गाने भी नहीं गा पाते क्यों?’

आखिरकार हमने मणिपुर छोड़ दिया

जुनू का जीवन संघर्ष लोगों के लिए प्रेरणा है। वे बताती हैं- ‘हम लोग मूल रूप से भारतीय नेपाली हैं। मेरे माता-पिता का नाम आलोक-उमा गौतम है। जब मैं 16-17 साल की हुई, तो मणिपुर से बाहर निकल आई। कुछ साल मैं असम में रही। वहां बैंड में गाना शुरू किया। यानी कुछ स्ट्रगल किया। ऐसा करते-करते मुझे शिलांग (मेघालय) से एक त्रिपुरा की स्थानीय भाषा गारो में प्ले बैक सिंगिग का पहला मौका मिला। इस तरह मैंने गारो भाषा में तीन गाने गाए। उस टाइम में यूट्यूब का चलन नहीं था।’

असम से सिलीगुड़ी शिफ्ट हो गए

जुनू कहती हैं- ‘असम से हम लोग पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शिफ्ट हो गए। सिलीगुड़ी आने से मेरे लिए अच्छा हो गया। मुझे एक लाइनअप मिल गया म्यूजिक के लिए। यहां आकर मैंने छोटे-मोटे बैंड में गाना शुरू किया। फिर फिल्म और एलबम में भी रिकॉर्डिंग मिलने लगी। सिलीगुड़ी में आकर हमने दार्जिलिंग की संगीत हस्तियों और पहाड़ के गोरखाली समाज से मजबूत रिश्ते बनाने और खुद को एक कलाकार के तौर पर स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’

नेपाली फिल्मों में पहला ब्रेक

नेपाली में एक मूवी बन रही थी। यह फिल्म प्रसिद्ध साहित्यकार झमक घिमिरे के जीवन-संघर्ष पर आधारित थी। झमक सेरिब्रल पॉलिसी से पीड़ित हैं। उन्होंने अपने पांव से एक लकड़ी का टुकड़ा लेकर पहला शब्द ‘क’ लिखा था। इसके बाद उन्होंने लिखना सीखा और अपनी बायोग्राफी -जीवन काँडा कि फूल (Jiwan Kada Ki Phool) तैयार की। इसी किताब पर नेपाली फिल्म बनी थी। इसमें गाने का मुझे पहला अवसर मिला था। झमक ने जो पहला अक्षर ‘क’ लिखा था, उसी को लेकर फिल्म में गाना बना था और उसे गाने का मौका मुझे मिला। जुनू इसी गाने की वजह से अच्छी पहचान बनाने में सफल हुई।’

नेपाली भाषा पर हमें गर्व है

जुनू को नेपाल के अलावा सिक्किम, असम और दिल्ली में भी पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चुका है। नेपाली, मणिपुर, बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी पर अच्छी पकड़ रखने वालीं जुनू ने मणिपुर से ही अपनी पढ़ाई पूरी की। वे कहती हैं- ‘मैंने नेपाली फिल्मों में प्ले बैक सिंगिग और कई एल्बम किए हैं। बंगाली में भी गाया है। मैंने करीब 200 गाने गाए होंगे। मुझे अपनी मातृभाषा नेपाली पर गर्व है। भारतीय संविधान ने नेपाली भाषा को 8वीं अनुसूचि में शामिल किया है, यह खुशी की बात है।’

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