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आदिवासी कला से रूबरू हो रहे लोग खान-पान और चौमुखी दीया है खास

चिन्हारी गैलरी में मप्र की संस्कृति और जनजातीय जीवन शैली देखने को मिल रही

शहर के जनजातीय संग्रहालय में आदिवासी कला और संस्कृति की एक अमिट छाप देखने को मिलती है। यहां स्थापित की गई चिन्हारी गैलरी अपने आप में मप्र की संस्कृति को समेटे हुए हैं। यहां आदिवासियों के इस्तेमाल की हर छोटी बड़ी चीज मौजूद हैं। उनके घर और उनमें उपयोग होने वाले बर्तन, कपड़े, खान- पान, खेती किसानी में उपयोग होने वाले औजार सब कुछ एक ही छत के नीचे मौजूद हैं, जो कई प्रकार की धातुओं से बने हैं। यह वस्तुएं घर की शोभा बढ़ाने के काम आती हैं। जनजातीय जीवन शैली को करीब से देखने की चाह रखने वालों के लिए ये म्यूजियम एक खुली किताब की तरह है, जहां बस कुछ ही मिनटों में आदिवासी कला संस्कृति से रूबरू हुआ जा सकता है।

गैलरी में अलग-अलग धातु से बने 35 प्रकार के दीये

चिन्हारी गैलरी में 35 प्रकार के दीये हैं जो अलग-अलग धातु से बनाए गए हैं। वहीं पांच प्रकार के टेबल स्टैंड हैं, जिनके ऊपर कांच को जोड़ा जाता है जो एक टेबल के रूप में उपयोग में आता है। वहीं उज्जैन के महाकालेश्वर के मंदिर की प्रतिकृति भी बनाई गई है। इसे फाइबर से बनाया गया है। इसकी कीमत 3500 रुपए रखी गई है। इसे छतरपुर से मंगवाया गया है। इन वस्तुओं को उपयोग घर, कार्यालय और घर की गैलरी में भी किया जा सकता है।

आदिवासी बच्चों के खेलों के सामान

जनजातीय संग्रहालय के अध्यक्ष अशोक मिश्रा ने बताया कि जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की बैगा, सहरिया, गोंड, भील, कोरकू, कोल और भारिया जनजातियों की झलकियां दिखने को मिलती हैं। यहां आकर पता चलता है कि अलग-अलग आदिवासी समूह किस तरह के घरों में रहते हैं और उनकी दिनचर्या कैसी होती है। संग्रहालय में आदिवासी बच्चों के खेलों जैसे मछली पकड़ना, चौपड़, गिल्ली- डंडा, पोशंबा, घर-घर, पंच गुट्टा, गेड़ी, पिट्ठू भी बने हुए रखे हैं।

दीये और टेबल स्टैंड की सैकड़ों की किस्में

चिन्हारी गैलरी में रखी हर एक वस्तु की अलग ही खासियत होती है। यहां घर में उपयोग होने वाले लैंप, दीये और टेबल स्टैंड की सैकड़ों की किस्में मौजूद हैं। इसमें एक दिया जो पीतल से बनाया है। वो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। उसकी कीमत 2000 के करीब है। जबकि टेबल स्टैंड की कीमत 11 हजार रुपए से शुरू होती है। हाल ही में भोपाल में आयोजित यूनेस्को के कार्यक्रम में आए देश और विदेश के प्रतिनिधियों को यह कला काफी लुभाई थी। इसमें खासकर टीकमगढ़ का चौमुखी दीया यूनेस्को के प्रतिनिधियों को काफी पसंद भी आया। इसमें चार घंटी, पीतल की चैन, मोर बनाए गए हैं। इसकी कीमत 2000 रुपए रखी गई है।

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