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साल के अंत में डिस्काउंट की भरमार, ग्राहकों को लुभाने के लिए कंपनियां ले रहीं अक का सहारा

समझदारी से ऑनलाइन शॉपिंग डिस्काउंट को फॉलो करें तो रहेंगे विन विन सिचुएशन में

प्रीति जैन- हर इंसान खुद को खुश रखने के तरीके ढूंढता है और डिस्काउंट के सीजन में सबसे ज्यादा खुशी कई लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग सेल से मिलती है। इस समय ऑनलाइन वेबसाइट्स पर साल के आखिर में आने वाली सेल की भरमार है जिसमें कंपनियां ग्राहकों से जमकर पैसा निकलवा लेती हैं, क्योंकि डिस्काउंट के लालच में जिन चीजों की बहुत जरूरत नहीं होती वो भी शॉपिंग कार्ट में जुड़ जाती हैं। साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक सेल कस्टमर को खुशी देती है। वहीं मार्केटिंग एक्सपर्ट्स का कहना है एआई की वजह से संभावित ग्राहक जो भी इंटरनेट पर सर्च कर रहे हैं, कंपनियां उन्हीं चीजों दिखाकर अपना बाजार बढ़ा रही हैं। डिस्काउंट का इस्तेमाल यदि समझदारी से हो तो कस्टमर्स विन-विन सिचुएशन में रहता है।

साल के आखिर में फेस्टिव सीजन में बढ़ती है 40 फीसदी तक बिक्री

नेशनल रिटेलर फेडरेशन के अनुसार नवंबर-दिसंबर जैसे फेस्टिव सीजन में रिटेल कंपनियों की सेल सालभर के मुकाबले 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाती है। एक या दो बार किसी प्रोडक्ट को किसी वेबसाइट पर देख लिया तो सोचे-जागते हर लिंक या वेबसाइट पर उसी प्रोडक्ट का विज्ञापन सामने पॉप- अप होने लगता है। एआई पूरे समय संभावित ग्राहक को बार-बार उसकी विशलिस्ट में जु़ड़ा सामान दिखाने का काम करती रहती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक कपड़े हो या अन्य कोई उत्पाद, सभी पर मैन्युफेक्चरिंग ईयर का टैग लगा रहता है, अब साल 2023 जा रहा है तो यह प्रोडक्ट 1 जनवरी 2024 को एक साल पुराना कहलाने लगेगा इसलिए कंपनियां पिछले सालों का स्टॉक क्लीयर करती हैं, ताकि नए साल में नए कलेक्शन लॉन्च कर सकें।

ब्रांडेड सामान के डिस्काउंट पर ही भरोसा करें

सेल में ज्यादातर प्रोडक्ट्स की कीमत 999 जैसी यानी ऑड डिजिट होती है तो ग्राहक को लगता है कि वो 900 रुपए दे रहा है, उसे यह महसूस नहीं होता कि वो 1000 रुपए दे रहा है। वहीं 70 फीसदी डिस्काउंट स्क्रीन पर दिखता है लेकिन जब उस कैटेगरी में जाएं तो कुछ ही प्रोडक्ट जो कम जरूरत के होते हैं, उन पर यह डिस्काउंट होता है, लेकिन जब व्यक्ति एक बार एंटर कर गया तो 30 से 60 फीसदी डिस्काउंट वाली कैटेगरी में जाकर खरीदारी कर लेता है। इस दौरान इस सिर्फ ब्रांड्स के सामान ही लें क्योंकि अन्य लोकल कंपनियों के प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ाकर लिखी जाती है और फिर उस पर डिस्काउंट लिखा जाता है, इसलिए ऑनलाइन साइट्स से ब्रांडेड चीजें ही लें।

इमोशनल बाइंग और जीत का अहसास

जब कोई व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मैंने सेल में पांच हजार में चार कोट खरीद लिए तो दूसरे को लगता है कि वो पीछे रह गया और उसे नुकसान हो गया। दरअसल, शॉपिंग से दिमाग में हैप्पी हार्मोंस रिलीज होते हैं और व्यक्ति को लगता है कि उसका जैकपॉट लग गया। कंपनी ग्राहक की जेब से डिस्काउंट के नाम पर ज्यादा पैसा निकलवा लेती हैं, इसलिए इमोशनल खरीदारी की बजाए समझदारी से चीजें खरीदें क्योंकि साल में आखिर में यह इसलिए आती हैं क्योंकि डिस्काउंट वाला कलेक्शन नया साल आने की वजह से पिछले साल का कहलाने लगता है। – डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, साइकोलॉजिस्ट

कंपनी-ग्राहक दोनोें को होता है फायदा

ऑनलाइन वेबसाइट और एआई मिलकर काम कर रहे हैं। हम मोबाइल पर जो भी देख रहे हैं उसे एआई द्वारा रीड किया जा रहा है यानी अब कंपनियां हमारा दिल और दिमाग पढ़ रही हैं और वे ऐसा माहौल तैयार करती हैं कि हम जिन चीजों को लेना चाहते हैं, वे हमें उस प्लेटफॉर्म तक पहुंचा देती हैं। हालांकि, अगर कस्टमर इंपल्सिव बाइंग न करें और समझदारी से सिर्फ ब्रांडेड चीजें ही खरीदे तो वह विन-विन सिचुएशन में रहता है। हम इसे मार्केटिंग फील्ड में कंपनी और ग्राहक दोनों का फायदा मानते हैं, जिसमें कंपनी का स्टॉक और ग्राहक की विशलिस्ट पूरी हो जाती है। – अमरजीत सिंह खालसा, डायरेक्टर, आइपर

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