
Lathmar Holi 2023 : होली का त्योहार उत्साह और उमंग से भरा होता है। फाल्गुन माह में आने वाला यह त्योहार रंगो और फूलों के बिना अधूरा है। मथुरा के बरसाना में विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली खेली गई। बरसाना में नंदगांव के ग्वालों पर बरसाना की गोपियां लठ बरसाई। लट्ठमार होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं।
कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में होली का उत्सव बहुत दिन पहले ही शुरू हो जाता है। मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली के अनेकों रंग हैं। यहां पर कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू तो कहीं लट्ठमार होली मनाने की परंपरा है। 27 फरवरी को बरसाने में लड्डू की होली खेली। जबकि, 28 फरवरी को को राधा रानी के बरसाने में लट्ठमार होली खेली गई। होली का ये अंदाज राधा रानी के प्रेम का प्रतीक माना गया है।
ग्वालों पर लाठियों से प्रहार करेंगी गोपियां
ग्वालों के स्वागत में हाथ में लाठियां लिए लड़कियां तैयार मिलेंगी। लट्ठमार होली के दौरान हुरियारिनें (लड़कियां) नंदगांव के हुरियारों (लड़के) पर प्रेमपगी लाठियां बरसाएंगी। इसके बाद हुरियारे बड़ी कुशलता और बुद्धि से खुद को बचाते हुए लाठी के प्रहारों को अपनी ढालों पर झेलेंगे। बता दें कि पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। ये साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।
लट्ठमार होली का महत्व
कहते हैं श्री कृष्ण और उनके मित्र द्वापर युग में कई लीलाओं के लिए प्रसिद्ध थे। बाल्यकाल में राधा और गोपियों के साथ अनेक लीलाएं करते थे। ऐसे में जब भी वे राधा और गोपियों के साथ होली खेलने जाते थे तो उसने उन्हें काफी तंग भी किया करते थे। इसीलिए राधा जी और गोपियां डंडा लेकर श्रीकृष्ण और ग्वालों के पीछे दौड़ती थीं। उनका स्वागत रंग और डंडों से किया जाता था इसलिए तभी से लट्ठमार होली खेलने की यह परंपरा चली आ रही है।
लट्ठमार होली का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं (दस्तों) के साथ राधा रानी से मिलने उनके गांव बरसाना जाया करते थे। वहीं पर राधा रानी और गोपियां श्रीकृष्ण और उनके सखाओं की शरारतों से परेशान होकर उन्हें सबक सिखाने के लिए लाठियां बरसाती थी। हंसी-ठिठोली कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का उपयोग करते थेद्ध धीरे-धीरे इस परंपरा की शुरुआत हो गई है जिसे लट्ठमार होली का नाम दे दिया गया।
हर साल बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को खेली जाती है। जबकि, नंदगांव में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को लठमार होली मनाई जाती है जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है। इस होली में गोपियां हुरियारों का लट्ठ और गुलाल दोनों से स्वागत करती हैं। यह होली बरसाने की लाडली जी के मंदिर में खेली जाती है। इसके लिए निमंत्रण नंदगांव के नंद महल जाता है। निमंत्रण का स्वीकृति का संदेश शाम के समय लाडली जी के मंदिर जाएगा और फिर नंद गांव के हुरियारे बरसाने होली खेलने जाते हैं।
(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)