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हमीदिया में रेजिडेंट डॉक्टरों का संकट, फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स के भरोसे मरीज

प्रवीण श्रीवास्तव भोपाल। गांधी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हमीदिया अस्पताल में फिलहाल करीब 300 रेजिडेंट डॉक्टरों का टोटा हो गया है। इसके चलते मरीजों को मिलने वाली सुविधा तो प्रभावित हो ही रही है, इसके अलावा फर्स्ट ईयर बैच के रेजिडेंट डॉक्टरों को बिना अवकाश ड्यूटी करना पड़ रही है। यह हालात कोरोना के बाद लेट हुए सत्रों के चलते बने हैं।

दरअसल, अप्रैल में नीट पीजी के एग्जाम हो चुके हैं, लेकिन अभी तक काउंसलिंग की डेट नहीं आई है। काउंसलिंग के बाद सितंबर तक फर्स्ट इयर के रेजिडेंट डॉक्टरों की भर्ती होगी। सेकंड और थर्ड ईयर में आधे ही रेजिडेंट डॉक्टर बचे हैं। ऐसे में सितंबर तक अस्पताल में मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

मेडिसिन सहित अन्य वार्डों में ऐसे हैं हालात

आथोर्पेडिक विभाग : शनिवार दोपहर 1 बजे फर्स्ट ईयर का एक ही रेजिडेंट वार्ड में काम करता मिला, जबकि इस वार्ड में 20 से अधिक मरीज भर्ती थे। इन रेजिडेंट का कहना है कि दो से तीन महीने हालात ऐसे ही रहेंगे। हम लगातार 35 से 40 घंटे काम कर रहे हैं। कई बार खाना भी वार्ड में ही खाते हैं।

मेडिसिन विभाग : दोपहर 3.05 बजे यहां भी एक ही रेजिडेंट डॉक्टर वार्ड में काम कर रही थी। जबकि वार्ड में 16 मरीज भर्ती थे। हालांकि नर्सिंग स्टाफ काम कर रहा था। इनकी कमी के कारण मरीजों को परेशान होना पड़ा।

सर्जरी वार्ड : हॉस्पिटल वन के सर्जरी वार्ड में 17 मरीज भर्ती थे, लेकिन एक ही रेजिडेंट डॉक्टर ड्यूटी पर था। सीनियर डॉक्टर एक बार ही वार्ड में आते हैं। इसके बाद इन सभी मरीजों की जिम्मेदारी एक ही डॉक्टर पर होती है।

ऐसे समझें परेशानी : जीएमसी में फर्स्ट, सेकंड और थर्ड ईयर को मिलाकर 543 रेजिडेंट डॉक्टर (प्रत्येक में 181) होते हैं। सेकंड ईयर के आधे छात्र अन्य प्रोग्राम में हैं। थर्ड ईयर की परीक्षाएं हो चुकी हैं और 31 जुलाई तक इस ईयर के सभी रेजिडेंट डॉक्टर रिलीव हो जाएंगे। फिलहाल इनमें से आधे छुट्टी पर हैं। अब फर्स्ट इयर के 181 छात्रों के साथ कुल 250 रेजिडेंट डॉक्टर ही बचे हैं। 300 रेजिडेंट्स कम है।

नेशनल कॉलेज में व्यवस्था

एम्स जैसे नेशनल कॉलेजों में इस स्थिति से निपटने की बेहतर व्यवस्था है। इन संस्थानों में एक आदेश जारी किया गया है कि फर्स्ट ईयर के छात्रों के आने तक थर्ड ईयर के छात्रों को रिलीव नहीं किया जाएगा। इस दौरान थर्ड ईयर के छात्रों को वेतन और अनुभव प्रमाण-पत्र दिया जाएगा। मप्र राज्य सरकार ने ऐसा आदेश नहीं दिया।

यह सतत प्रक्रिया है। रोटेशन के आधार पर ड्यूटी लगाई जाती है। जैसे ही काउंसलिंग होगी और नए स्टूडेंट्स आ जाएंगे, समस्या दूर हो जाएगी। – डॉ. अरविंद राय, डीन, गांधी मेडिकल कॉलेज,भोपाल

दिक्कत तो है, सेकंड ईयर के आधे छात्र ट्रेनिंग में गए हैं। थर्ड इयर में भी कम हैं। ऐसे में फर्स्ट ईयर के छात्रों पर वर्कलोड ज्यादा है। हालांकि इससे छात्रों का प्रेक्टिकल नॉलेज बढ़ता है। -डॉ. संकेत सीते, अध्यक्ष, जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन

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