
लोक गुंजन नाट्य संस्था के तत्वावधान में शहीद भवन में एकल नाटक ‘अनेदखा सा सबकुछ’ का मंचन सोमवार को किया गया। इस नाटक की खासियत ये रही कि नाटक की कहानी ब्लाइंड सेंटर में रहने वाले लोगों के मन की व्यथा को दर्शाती है। नाटक के लेखक और निर्देशक हर्षित शर्मा ने बताया कि वे नाटक की कहानी लिखने से पहले उज्जैन, इंदौर और बड़वानी स्थित ब्लाइंड सेंटर में रहने वाले लोगों से मिले। उसके बाद एक दृष्टिहीन लड़की की कहानी को लिखा, जो जिनेवा की लैब में रिसर्च करने की आकांक्षा रखती है। मंचन के दौरान अभिनेत्री पूजा मालवीय ने करीब एक घंटे का शानदार एकल अभिनय प्रस्तुत कर दर्शकों की तालियां बटोरीं। गीत-संगीत से सजे इस नाटक को देखने के लिए सभागार में बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे। दर्शकों का कहना है कि नाटक समाज को कई संदेश देता है।
जिनेवा की लैब में थी रिसर्च करने की आकांक्षा
यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो अपने आसपास कल्पनाओं का अनूठा संसार गूंथ लेती है। नाटक की कहानी होली के दिन से शुरू होती है, जब नायिका होली खेलकर अपने कमरे में आती है और पहाड़ों के बीच ट्रिप पर जाने की तैयारी करती है। तैयारी के दौरान ही वह कुछ अपनी पुरानी ट्रिप की यादों को ताजा करने लगती है और कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है। वह याद करती है कि इसके पहले कई स्थानों पर जब वह गई, तो वहां उसके साथ कैसा व्यवहार किया गया। इसके साथ ही अपनी कल्पनाएं और सपने भी बताती है। वह फिजिक्स की छात्रा रही है और जिनेवा की लैब में रिसर्च करना उसका एक सपना है, लेकिन वह सोचती है कि ब्लाइंड होने के चलते शायद ही उसे वह नौकरी मिल पाए। तब उसकी दोस्त रचना प्रोजेक्ट जिनेवा की लैब में जमा करती है और उसे आखिरकार वहां रिसर्च करने का मौका मिलता है।
बहुत रिसर्च के बाद लिखी नाटक की कहानी
बहुत खोज करने के बाद इस नाटक की कहानी लिखी है। कहानी लिखने से पहले उज्जैन, इंदौर और बड़वानी के ब्लाइंड सेंटर में जाकर लोगों से मिला, तब कहानी लिखने का आइडिया मिला। – हर्षित शर्मा, निर्देशक
सिर्फ छह दिन रिहर्सल करने का मौका मिला
मैं एमपीएसडी की पासआउट हूं। पिछले आठ-दस साल से अभिनय कर रही हूं। इस नाटक के लिए मुझे सिर्फ छह दिन रिहर्सल करने का मौका मिला। हालांकि मैं अब तक 100 से अधिक नाटकों में काम कर चुकी हूं। – पूजा मालवीय, अभिनेत्री
दृष्टिबाधित लोगों के जीवन को दिखाया गया
नाटक की कहानी बहुत ही अच्छी थी। नाटक देखकर समझ आया कि दृष्टिबाधित लोगों का जीवन कैसा होता है, उनमें आम लोगों से भी ज्यादा समझ होती है। नाटक में उनके मन की चाह को दिखाया गया। – सोना विश्वकर्मा, दर्शक