चेन्नई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 143 के तहत पूछे गए 14 सवालों पर गंभीर आपत्ति जताते हुए रविवार को आठ गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है। उन्होंने इस पत्र के माध्यम से राष्ट्रपति के कदम का विरोध करने और संवैधानिक मूल ढांचे की रक्षा के लिए साझा मोर्चा बनाने की अपील की है।
गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी
स्टालिन ने यह पत्र पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, केरल, झारखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्रियों को भेजा है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने का अनुच्छेद 143 का प्रयोग उस स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए जब किसी मुद्दे पर पहले से न्यायिक निर्णय आ चुका हो। उन्होंने इसे केंद्र सरकार की एक सोची-समझी राजनीतिक चाल बताया है।
संविधान के मूल ढांचे की रक्षा की अपील
स्टालिन ने मुख्यमंत्रियों से अपील की है कि वे मिलकर कानूनी रणनीति तय करें और सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के द्वारा भेजे गए सवालों का विरोध दर्ज करें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि एक साझा संवैधानिक मोर्चा बनाया जाए जो केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठा सके।
राष्ट्रपति ने पूछे थे 14 सवाल
13 मई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे। ये सवाल राज्यपालों की भूमिका, विधेयकों पर मंजूरी देने की समयसीमा और कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति व राज्यपाल की शक्तियों पर समय-सीमा निर्धारण को लेकर थे। इसका मूल संदर्भ तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले से जुड़ा है।
गवर्नरों के बढ़ते दखल पर चिंता
स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा है कि केंद्र सरकार राज्यपालों का इस्तेमाल विपक्ष-शासित राज्यों के प्रशासन में बाधा डालने के लिए कर रही है। राज्यपाल न केवल विधेयकों पर हस्ताक्षर टालते हैं, बल्कि सरकारी फाइलों और नियुक्तियों में भी बेवजह हस्तक्षेप करते हैं। विश्वविद्यालयों में चांसलर की भूमिका का राजनीतिक दुरुपयोग भी चिंता का विषय है।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यपालों के पास कोई वीटो पावर नहीं है और वे बिलों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते। यह फैसला न केवल तमिलनाडु बल्कि अन्य राज्यों के संघीय अधिकारों की रक्षा में मील का पत्थर माना गया है।
स्टालिन ने कहा कि संविधान कुछ मामलों पर चुप है क्योंकि इसके निर्माताओं को भरोसा था कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग नैतिकता और गरिमा से काम लेंगे। लेकिन मौजूदा हालात में केंद्र सरकार इन खामियों का राजनीतिक लाभ उठा रही है।
राज्यों की एकजुटता जरूरी
स्टालिन ने अपने पत्र के अंत में आग्रह किया कि सभी गैर-भाजपा शासित राज्य इस मुद्दे पर एक स्वर में आवाज उठाएं, ताकि संवैधानिक मर्यादाएं और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके।
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