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लकवाग्रस्त मरीज अपने दिमाग से ही कंट्रोल कर सकेगा डिजिटल डिवाइस

एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक को मिली एक और सफलता

न्यूयॉर्क। अरबपति एलन मस्क के स्वामित्व वाली ब्रेन कंप्यूटर स्टार्टअप न्यूरालिंक ने कंपनी के ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस डिवाइस को दूसरे मरीज के ब्रेन में इम्प्लांट कर दिया है। यह इंप्लांटेशन सफल रहा। गौरतलब है कि मस्क की कंपनी लकवा के शिकार मरीजों की मदद के लिए एक खास मिशन पर काम कर रही है। कंपनी को लेकर लेटेस्ट अपडेट खुद एलन मस्क ने शेयर किया है। मस्क के अनुसार कंपनी द्वारा यह इंप्लाट इस तरह डिजाइन किया गया है, जो स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी वाले मरीजों को डिजिटल डिवाइस कंट्रोल करने में मदद करता है। स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी वाले मरीज इस इंप्लाट के साथ दिमाग में आए केवल एक विचार से डिजिटल डिवाइस को कंट्रोल कर सकते हैं।

मस्क ने दी जानकारी

मस्क के अनुसार इस नए डिवाइस के साथ पहले मरीज नोलैंड आर्बाेघ को अलग-अलग टास्क परफोर्म करने में मदद मिल रही है। वह वीडियो गेम खेलने, सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने और लैपटॉप पर कर्सर मूव करने का काम कर रहा है। यह सब काम नोलैंड ड्रप्लीजिक नाम की बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद कर पा रहे हैं। नोलैंड का शरीर गर्दन के निचले हिस्से से लकवाग्रस्त है।

दूसरा मरीज भी कर सकेगा दिमाग से चीजें कंट्रोल

मस्क ने दूसरे मरीज को लेकर अभी तक ज्यादा जानकारियां नहीं दी हैं। हालांकि उन्होंने कहा है कि नए मरीज को भी नोलैंड आर्बाेघ की तरह ही स्पाइनल कोर्ड इंजुरी है। वह भी लकवाग्रस्त है। मस्क ने बताया कि दूसरे मरीज के मस्तिष्क में इम्प्लांट के 400 इलेक्ट्रोड ठीक तरह से काम कर रहे हैं। न्यूरालिंक का डिवाइस कुल 1,024 इलेक्ट्रोड से लैस है, जो ब्रेन के सिग्नल कैप्चर और ट्रांसमिट करने के लिए डिजाइन किया गया है। गौरतलब है कि न्यूरालिंक मस्क का ब्रेन टेक्नोलॉजी स्टार्टअप है। गौरतलब है कि न्यूरालिंक का मकसद उन मरीजों को भी काबिल बनाना है, जो पूरी तरह से कुछ भी करने में अक्षम हैं।

न्यूरालिंक की चिप ऐसे काम करती है

  • इंसानी दिमाग में कई स्पेशल न्यूरॉन कोशिकाएं होती हैं, जो शरीर की दूसरी हिस्सों की कोशिकाओं से कनेक्ट रहती हैं और उन्हें सिग्नल ट्रांसमिट करती हैं।
  • न्यूरालिंक चिप के थ्रेड्स में मौजूद इलेक्ट्रोड्स दिमाग के सिग्नल को रीड करती हैं और सिग्नल को न्यूरालिंक ऐप या कनेक्टेड डिवाइस तक ट्रांसमिट करती हैं।
  • इस तरह से चिप से कनेक्ट कम्प्यूटर या स्मार्टफोन को इंसान बिना छुए कंट्रोल कर सकता है।

एआई की मदद से दिल के दौरे के खतरे का लगाया जा सकता है पता

लंदन। तेजी से हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अब बीमारियों को पहचानने में भी सहायक हो रहा है। वैज्ञानिकों ने हाल में एक एआई मॉडल बनाया है। यह दिल में सूजन का पता लगाता है, जो सीटी स्कैन पर दिखाई नहीं देती है, जिसमें एक्स-रे और कंप्यूटर तकनीक दोनों शामिल हैं।

5 अस्पतालों में चल रहा प्रोजेक्ट

यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा इंग्लैंड द्वारा समर्थित एक पायलट प्रोजेक्ट है, जो ऑक्सफोर्ड, लीसेस्टर, लिवरपूल मिल्टन कीन्स और वॉल्वरहैम्प्टन में 5 अस्पताल ट्रस्टों में चल रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में, सीने में दर्द से पीड़ित मरीज, जिन्हें नियमित सीटी स्कैन के लिए भेजा जाता है, उनके स्कैन का विश्लेषण कैरिस्टो डायग्नोस्टिक्स के कैरी-हार्ट एआई प्लेटफॉर्म द्वारा किया जाता है। यह सीने में मौजूद सूजन का पता लगाता। सूजन हृदय रोग और दिल के दौरे से जुड़ी है। ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन का अनुमान है कि ब्रिटेन में लगभग 76 लाख लोग हृदय रोग से पीड़ित हैं।

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