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23 सितंबर को होगी एक देश-एक चुनाव कमेटी की पहली मीटिंग, पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में होगी चर्चा

नई दिल्ली। एक देश, एक चुनाव कमेटी की पहली बैठक 23 सितंबर को होगी। कमेटी के चेयरमैन और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसकी जानकारी दी। मीटिंग कहां होगी, अभी ये नहीं बताया गया है। बीते दिनों सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। जिसके बाद 6 सितंबर को गृहमंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद से मुलाकात की थी। इस मीटिंग को एक शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था।

विशेष सत्र में बिल लाने की अटकलें

सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि, सरकार विशेष सत्र में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ से जुड़े बिल का प्रस्ताव ला सकती है। इस बीच चुनाव को लेकर एक स्टडी की रिपोर्ट जारी हुई है। जिसके मुताबिक, देश के तीनों टायर, लोकसभा से लेकर पंचायत स्तर का चुनाव कराने पर कुल 10 लाख करोड़ खर्च आने का अनुमान है। वहीं सभी चुनाव एक साथ या एक सप्ताह के अंदर कराने पर इसके खर्च में 3 से 5 लाख करोड़ की गिरावट हो सकती है।

कमेटी में हैं यह 7 सदस्य

केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जो एक साथ चुनाव कराने के लिए रूपरेखा तय करेगी। कमेटी में अध्यक्ष के अलावा 7 अन्य सदस्य शामिल हैं। इसमें गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी शामिल हैं।

हालांकि, अधीर रंजन ने कमेटी से अपना नाम वापस ले लिया है। उन्होंने सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि, ये समिति एक पहले से तैयार निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए बनाई गई है, न कि कोई राय लेने के लिए।

वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की वकालत कर चुके हैं। नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होंगे। मई 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के कुछ समय बाद से ही एक देश एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई थी।

क्या है एक देश-एक चुनाव का मतलब

एक देश-एक चुनाव या वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि, पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। बता दें कि, आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे। लेकिन कई विधानसभाएं 1968 और 1969 में समय से पहले ही भंग कर दी गईं। जिसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई और वन नेशन-वन इलेक्शन की परंपरा टूट गई।

वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे

पैसों की बर्बादी से बचना : इस बिल को लेकर सबसे बड़ा तर्क यही दिया जा रहा है कि, इससे चुनाव में खर्च होने वाले करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपए, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थए। पीएम मोदी कह चुके हैं कि, इस बिल से देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।

बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकारा : भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इनके आयोजन में पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस बिल के लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा। चुनावों के लिए पूरे देश में एक ही वोटर लिस्ट होगी, इससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।

नहीं रुकेगी विकास कार्यों की गति : यह भी कहा जा रहा है कि, देश में बार-बार होने वाले चुनावों की वजह से आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है। जिसकी वजह से सरकार समय पर कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाती या फिर विभिन्न योजनाओं को लागू करने में दिक्कतें आती हैं। इससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं।

काले धन पर लगेगी लगाम : एक तर्क यह भी है कि, इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी। विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर चुनावों के दौरान ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है।

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