
अम्बरीश आनंद-ग्वालियर। काली वर्दी में जब लंबी-चौड़ी कद काठी के पुरुष सामने होते हैं तो उन्हें देखते ही लोग ठिठक जाते हैं। ये पुरुष बाउंसर विशेष तौर पर अलग-अलग मौके पर तैनात किए जाते हैं, पर क्या आपने कभी महिला बाउंसरों को देखा है? इनकी कल्पना लोग आमतौर पर नहीं करते। खासकर चंबल अंचल में तो बिलकुल नहीं, लेकिन अब ग्वालियर में भी महिला बाउंसर आपको क्लब या किसी बड़े आयोजन में देखने को मिल ही जाएंगी, जो सिर्फ लड़कियों ही नहीं, लड़कों की भी सुरक्षा करती हैं। महिला दिवस पर हम ऐसी ही एक महिला बाउंसर सायना खान की बात कर रहे हैं, जो शहर की समाधिया कॉलोनी में रहती हैं और बच्चों को अच्छी परवरिश देने के लिए बाउंसर बनीं हैं।
बातचीत में सायना ने बताया कि उनकी बहन का बेटा बाउंसर है। वह जब भी घर आता था तो बोलता कि आपकी कद-काठी ऐसी है कि, जहां बाउंसर की वर्दी में खड़ी हो जाओ तो कोई आगे नहीं बढ़ सकता। घर की माली हालत ठीक न होने के चलते उन्होंने ट्रॉयल के रूप में बाउंसर का काम करना शुरू किया और आज आलम यह है कि वे प्रोफेशनल रूप से बाउंसर बन गई हैं।
काली वर्दी का रहता है खौफ
दरअसल फैशन शो, बड़ी पार्टी, सेलेब्रिटी की सुरक्षा, बार, पब, नाइट क्लब, कंपनियों के इवेंट आदि में महिला बाउंसरों की तैनाती होती है। लगातार सजग रहकर सायना किसी भी प्रकार की अफरा-तफरी जैसी स्थिति को संभालने का काम करती हैं। हालांकि यह काम बहुत चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि ऐसी जगहों पर अक्सर जटिल परिस्थितियां उत्पन्न होने की आशंका होती है। खासतौर पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए इन बाउंसरों की जरूरत अब काफी महसूस की जा रही है। सायना का कहना है कि जब मैं काली वर्दी पहनकर बाउंसर के रूप में आती हूं तो सामने वाले को मेरा खौफ रहता है। इस दौरान वह अगर किसी गलत इरादे से भी आया हो तो वहां कुछ नहीं कर पाता है।
दिन में खाना और रात में सुरक्षा
सायना कहती हैं कि आमतौर पर बाउंसर का काम पुरुषों का माना जाता है। ऐसी संकुचित सोच की कीमत महिलाओं को भुगतनी पड़ती है, पर साथ ही इस तरह के संघर्ष हमें मजबूत भी बनाते हैं। बहुत मेहनती सायना सिर्फ बाउंसर ही नहीं हैं। वे दिन के समय एक निजी रेस्टोरेंट में खाना बनाने का काम भी करती हैं और फिर बिना थके शाम 6 बजे से रात्रि 1:30 बजे तक बाउंसर का काम करती हैं। उनके पति एक फैक्ट्री में काम करते हैं, लेकिन आय बहुत ज्यादा नहीं होने से तीन बच्चों और परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल हो जाता है। वे अपने बच्चों को एक बेहतर जिंदगी देना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि उनके बच्चे जिंदगी में कुछ बड़ा करें। उनके सभी सपने पूरे हों, इसलिए वह इतनी मेहनत कर रही हैं।
परिवार ने मेरा सपोर्ट नहीं किया
सायना खान कहती हैं, जब उन्होंने बाउंसर बनने का सोचा तो उनके पति के अलावा परिवार के किसी सदस्य ने उनका सपोर्ट नहीं किया। सबका कहना था कि यह भी कोई महिलाओं का काम हैं क्या? कोई दूसरा काम कर लो, लेकिन मुझे तो मेरे बच्चों को अच्छी परवरिश देनी थी और उन्हें एक बेहतर जिंदगी देनी थी, तो किसी की परवाह न करते हुए मैं बाउंसर बन गई। मेरे पति मुझे मेरे काम पर छोड़ने और देर रात लेने भी आते हैं। वे कहती हैं कि अगर महिला में बल है और शारीरिक रूप में चुस्त है तो वे बाउंसर बन सकती हैं। इस काम में भी खासा स्कोप है और पैसा भी अच्छा मिलता है। सायना कहती हैं कि जब तक मेरे शरीर में ताकत है, मैं बाउंसर का काम करती रहूंगी।
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