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भाजपा की प्रचंड जीत में RSS भी मुख्य शिल्पकार, 4.25 करोड़ लोगों से किया संपर्क

राजीव सोनी-भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत में चुनावी प्रबंधन व लाड़ली बहना योजना की जितनी भूमिका है, उससे कहीं ज्यादा मैदानी मोर्चे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 75 हजार वालेंटियर्स का कमाल भी है। संघ के उच्च स्तरीय पदाधिकारी पहली बार हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की खातिर विधानसभा चुनाव की बाजी पलटने 4 महीने तक दिन-रात जुटे रहे। इस दौरान छोटे-बड़े गांवशहरों सहित कई स्तरों पर टोलियां गठित कर 5.5 लाख बैठकें हुईं और 4.25 करोड़ लोगों से सीधा संवाद-संपर्क स्थापित किया गया।

प्रदेश के चुनावी इतिहास में आरएसएस की यह सबसे बड़ी खामोश मुहिम थी। विधानसभा चुनाव में संघ कभी इस तरह का टारगेट हाथ में नहीं लेता। लेकिन, छह महीने पहले प्रदेश की सभी 230 सीटों की जो इंटेलिजेंस रिपोर्ट थी, वह बहुत नकारात्मक थी। सत्ता-संगठन के अलावा संघ के सर्वे भी भाजपा को दो अंकों से ज्यादा सीटें नहीं दे रहे थे। सूत्रों के अनुसार, संघ के स्वयंसेवकों ने इस मुहिम में भाजपा कार्यकर्ताओं की कोई मदद नहीं ली। उच्च स्तर पर भाजपा नेता कमजोर सीटों के बारे में इनपुट्स देते रहे। संघ पदाधिकारियों ने इस संबंध में अपनी औपचारिक प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।

समन्वय बैठक में फैसला

जून 2023 की समन्वय बैठक में यह निर्णय लिया गया। जुलाई में रणनीति-कार्ययोजना तैयार होने के बाद अगस्त में टीम को मैदान में उतार दिया गया। चुनौतीपूर्ण सीटों के लिए अलग से योजना बनी। इनमें खासतौर पर विदिशा, जबलपुर पश्चिम, राऊ, सोनकच्छ, कालापीपल, मैहर, लहार, भोपाल मध्य, राजनगर, दमोह, बंडा, इंदौर-1 और देपालपुर जैसी सीटों को चुनौतीपूर्ण माना गया।

हिंदुत्व की खातिर

आरएसएस के उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि अभी मप्र की हार से हिंदु एकजुटता और आगामी लोकसभा चुनाव से लेकर विचारधारा व राष्ट्रीयता कमजोर होती। इसलिए यह चुनौती स्वीकार की गई। मुहिम में सभी आनुषांगिक संगठनों के स्वयंसेवकों को वोटिंग बढ़ाने का टास्ट सौंपा गया। इसके लिए हर घर से वोटर्स को निकालने उन्हें बूथ तक पहुंचाने की जवाबदारी तय की गई।

दिग्गजों ने संभाली कमान

गांवशहरों की बस्तियों का वर्गीकरण कर रणनीति बनाई गई। एक वालेंटियर को 10 परिवारों के लगातार संपर्क में रहने को कहा गया। इसके लिए पिछले कई चुनावों का रिकॉर्ड निकालकर वोटिंग के प्रति उदासीन लोगों की सूची पहले ही तैयार कर ली गई। पहले महीने में 3, फिर 4 बैठकें हुईं। इसके बाद हर दिन का फॉलोअप लिया गया। संघ के क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते से लेकर अन्य प्रांतीय पदाधिकारियों ने अलग-अलग क्षेत्रों की कमान संभाली।

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