
शहीद भवन में शुक्रवार को रंग अनुभव सांस्कृतिक समिति के तत्वावधान में साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी पर आधारित ‘पंचलाइट’ का मंचन किया गया। इस नाटक के निर्देशक मनोज मिश्रा हैं। इस नाटक की खास बात यह रही कि नाटक में प्रयुक्त पंचलाइट यानी पेट्रोमैक्स को निर्देशक ने रीवा से 150 किमी दूर भदवा गांव से लिया क्योंकि अब यह पेट्रोमैक्स आसानी से नहीं मिलते। नाटक में इस्तेमाल किया गया यह पेट्रोमैक्स 90 साल पुराना था। पहले के समय में गांव में रोशनी के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था। नाटक में बिहार के एक पिछड़े गांव का परिवेश दिखाया गया। जिसमें गांव के लोगों ने पंचलाइट के आने का जमकर उत्सव मनाते हैं। बघेलखंड के लोक गीतों से सजा यह नाटक देखकर दर्शकों ने जमकर तालियां बजाईं। नाटक की शुरुआत रामनवमी के मेले से पेट्रोमेक्स की खरीदी से हुई। जिसको खरीदने के लिए गांव के सभी लोगों ने पहले चंदा किया था।
पंचलैट की रोशनी में मना गांव में उत्सव
ग्रामीण भाषा में पंचलाइट को पंचलैट कहा जाता है, गांव में पंचलैट जलाने को लेकर समस्या खड़ी हो जाती है। तब गांव के सरदार को एक लड़की मुनरी के माध्यम से पता चलता है कि गोधन नामक युवक पंचलैट जलाना जानता है। जिसे पंचों ने गांव की बिरादरी से बाहर निकाल दिया था क्योंकि उसका प्रेम- प्रसंग मुनरी के साथ चल रहा था। इसी बात से नाराज होकर पंचों ने गोधन को गांव से बाहर निकाल दिया था, लेकिन जब यह पता चलता है कि गोधन ही यह पंचलैट जलाना जानता है तो गांव वाले उसे मना कर वापस ले आते हैं। गोधन की गलती को माफ कर दिया जाता है। पंचलैट के जलने के बाद उसकी रोशनी में गांव के सभी लोग भजन-कीर्तन और उत्सव मनाते हैं।
लोक धुनों पर आधारित रहा नाटक का संगीत
एक घंटे के इस नाटक में आठ कलाकारों ने अभिनय किया। बिहार के रंग जगत के प्रसिद्ध रंगकर्मी संजय उपाध्याय के विदेशिया गीत का नाटक में उपयोग किया गया। इस नाटक में संगीत लोक धुनों पर आधारित रहा जिसे काफी पसंद किया गया। -विनोद मिश्रा, सहायक निर्देशक
गांव का जीवन जानने का मिला मौका
पंचलाइट नाटक बहुत ही अच्छा लगा। यह जानकर खुशी हुई की पहले के लोग किस तरह रहते थे। रोशनी की कीमत उनके लिए क्या थी। आज के समय में इस तरह के नाटकों से पुराने समय का जीवन जानने का मौका मिलता है। -सुमित साहू, दर्शक
पहली बार नाटक में देखा पंचलैट
पहले पंचलैट, लालटेन, दिया- बत्ती, तेल से जलाने वाले उपकरण भी हुआ करते थे। यह सब हमें इस नाटक में देखने को मिला और मुझे लगता है कि बच्चों को यह नाटक जरूर दिखाना चाहिए। -कशिश साहू, दर्शक