
प्रवीण श्रीवास्तव-भोपाल। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा योजना में हर रोज हजारों मरीजों को नि:शुल्क दवाएं दी जाती हैं। सुनने में यह योजना बहुत अच्छी है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में मिल रही दवाओं की गुणवत्ता पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। यह सवाल कोई और नहीं, बल्कि कई सरकारी अस्पताल प्रबंधन ही खड़े कर रहे हैं। हाल ही में शिवपुरी जिला अस्पताल में बच्चों को दिए जाने वाले पैरासिटामॉल सिरप के अमानक होने का मामला सामने आया।
ऐसे में अस्पताल प्रबंधन ने मप्र पब्लिक हेल्थ कॉपोर्रेशन को पत्र लिखकर शिकायत की है। यही नहीं कॉपोर्रेशन ने जांच में शिकायत सही पाए जाने पर दवा निर्माता पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब तक यह जांच रिपोर्ट आई तब तक वह दवा लाखों बच्चों को बांट दी गई।
दरअसल, इन दवाओं के सेवन के बाद बच्चों पर असर नहीं दिखाई दिया। उनकी स्थिति बिगड़ने पर अस्पताल ने सिरप की जांच कराई तो वह अमानक निकला।
एक साल में 147 सैंपल फैल
बीते एक साल में सरकारी अस्पतालों की दवाओं के 147 सैंपल फेल हो चुके हैं। इन दवाओं में बच्चों को दिए जाने वाले एंटीबायोटिक के अलावा विटामिन सी, बी 12 की गोलियों के साथ ऑपरेशन में उपयोग होने वाली दवाएं भी शामिल हैं। यही नहीं पांच जिला अस्पतालों में इंटरवेनस सेट, निडिल और अन्य सर्जिकल मटेरियल भी अमानक निकल चुका है।
सैंपल साइज बहुत छोटा
सैंपल लेने से रिपोर्ट आने तक करीब एक से डेढ़ महीना लगता है। एक बैच से एक स्ट्रिप या एक गोली ही सैंपल के लिए लेते हैं। अमूमन एक बैच में एक लाख गोलियां होती हैं। वहीं, अस्पताल अपने स्तर पर महंगी दवाओं के सैंपल नहीं भेजते। कैंसर की दवा एक लाख रु. तक होती है। इसका सैंपल लेना होगा तो उसकी पूरी कीमत जमा करनी होती है।
ऑपरेशन में दी जाने वाली दवा भी अमानक निकली
हमीदिया अस्पताल में रक्त का थक्का जमाने वाली ट्रैनेक्सैमिक एसिड भी अमानक पाई गई थी। रक्त स्त्राव को रोकने के लिए इस दवा का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा ऑपरेशन के दौरान श्वसन पथ में लार और अन्य तरल पदार्थ को रोकने का काम करने वाली महत्वपूर्ण दवा एट्रोपिन सल्फेट इंजेक्शन भी अमानक मिल चुका है। दिसंबर में इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने इसकी शिकायत की थी। यहां यह दवाएं अमानक मिलीं: इंदौर जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक पैरासिटामॉल, एम्लोडिपिन, रायसेन में फॉलिक एसिड, सिवनी में आंख में डालने वाला जेंटामाइसिन इंजेक्शन, गर्भवतियों को दिए जाने वाले विटामिन बी1, बी2 और के साथ अन्य दवाएं भी अमानक मिल चुकी हैं।
किसी भी प्रकार की दवा के उत्पादन से पहले सॉल्ट की मात्रा पर रिसर्च किया जाता है। इसके बाद दवा में तय मात्रा में सॉल्ट मिश्रित किया जाता है। कई लोग कम समय में मुनाफा कमाने के लिए सॉल्ट की मात्रा का ध्यान नहीं रखते हैं। जिससे मरीज का उपचार प्रभावित होता है। अमानक दवाओं का असर उतना नहीं होगा, जितना उसे करना चाहिए। इससे मरीज की बीमारी ठीक नहीं होगी और मर्ज बढ़ेगा। वहीं, दवाओं का गुणवत्ताहीन होना अलग बात है। अगर दवा की गुणवत्ता सही नहीं होगी तो इससे मरीजों को सामान्य एलर्जी से लेकर किडनी और अन्य अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकते हैं। -डॉ. एसके सक्सेना, पूर्व अधीक्षक, जेपी अस्पताल
अस्पताल आने तक दवाओं की तीन स्तर पर जांच होती है। कंपनी खुद लैब से जांच कराकर ओके सर्टिफिकेट देती है, इसके अलावा एक थर्ड पार्टी लैब से भी जांच रिपोर्ट आती है। इसके बाद अस्पताल से रैंडम सैंपल लिए जाते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया को और बेहतर बनाया जा रहा है। अब तय किया जाएगा कि अस्पताल आने वाली हर दवा की जांच हो। – मयंक अग्रवाल, एमडी, मप्र हेल्थ कॉपोर्रेशन