Aakash Waghmare
21 Oct 2025
पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। चुनाव आयोग की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि राज्य की वोटर लिस्ट में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोगों के नाम भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। आयोग ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया है कि यह जानकारी बूथ स्तर के अधिकारियों द्वारा घर-घर जाकर की गई जांच में सामने आई है। इस खुलासे के बाद राज्य की राजनीति में उबाल आ गया है।
चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार में जारी मतदाता सूची की गहन समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि विदेशी नागरिकों के नाम भी मतदाता के रूप में दर्ज हो गए हैं। विशेष रूप से नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोगों की पहचान हुई है, जो अवैध रूप से सूची में जुड़ गए थे। आयोग ने स्पष्ट किया कि इन लोगों के नाम अंतिम सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे।
अधिकारियों के अनुसार, 1 अगस्त 2025 से विदेशी नागरिकों की पहचान और उनके दस्तावेजों की जांच की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके बाद 30 सितंबर को संशोधित अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। आयोग पूरे देश में अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची से हटाने के लिए विशेष गहन समीक्षा अभियान चला रहा है, जिसमें मतदाताओं के जन्मस्थान और नागरिकता से जुड़े दस्तावेजों की जांच की जाएगी।
इस मामले के सामने आते ही राजनीतिक दलों ने अपनी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी हैं। राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद प्रो. मनोज झा ने चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह एक प्लांटेड स्टोरी है। उन्होंने पूछा, “अगर बिहार में एक भी विदेशी है, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या यह सवाल देश के गृह मंत्री से नहीं पूछा जाना चाहिए?”
मनोज झा ने कहा कि इस तरह की खबरें सिर्फ नफरत फैलाने के लिए चलाई जाती हैं और मतदाता को गुमराह करने का प्रयास है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार इस तरह की कहानियों के जरिए चुनाव को प्रभावित करना चाहती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी इस मामले में चुनाव आयोग पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि आयोग मोदी सरकार की कठपुतली बनकर काम कर रहा है। सिब्बल ने बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया। उनका कहना था कि नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं है और यह अधिकार केवल भारत सरकार के पास है।
सिब्बल ने यह भी जोड़ा कि हर चुनाव आयुक्त अपने पूर्ववर्ती से भी अधिक सरकार से मेल बैठाने की होड़ में लगा है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हो रही हैं।
बिहार में इस समय चल रही मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया के तहत बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर लोगों की जानकारी ले रहे हैं। जिन मतदाताओं का नाम 1 जनवरी 2003 की मतदाता सूची में मौजूद था, उन्हें केवल एक गणना फॉर्म भरकर देना है। वहीं जिनका नाम 2003 के बाद जोड़ा गया है या जो पहली बार वोटर बन रहे हैं, उन्हें अपनी नागरिकता और उम्र से जुड़े प्रमाण-पत्र देने होंगे।
सभी मतदाता 1 सितंबर 2025 तक अपने दस्तावेज जमा कर सकते हैं। इसके बाद ही तय होगा कि वे अंतिम मतदाता सूची में बने रहेंगे या नहीं।