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MP में मंकीपॉक्स का खतरा! भोपाल-इंदौर में मॉनिटरिंग शुरू, जानिए कैसे फैलती है ये बीमारी

भोपाल। कोरोना वायरस के बीच अब दुनिया के कई देशों में फैल रहे मंकीपॉक्स ने चिंता बढ़ा दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को विदेश से आने वाले यात्रियों की विशेष निगरानी के निर्देश दिए हैं। वहीं मप्र में भी मंकीपॉक्स की आशंका को देखते हुए इंदौर, भोपाल सहित प्रदेश के अन्य एयरपोर्ट्स पर मॉनिटरिंग शुरू कर दी गई है।

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एयरपोर्ट्स पर मॉनिटरिंग के निर्देश

बता दें कि केंद्र से मिले आदेश के बाद एयरपोर्ट्स अथॉरिटीज को विशेष निर्देश दिए गए हैं। मंकीपॉक्स प्रभावित देशों की यात्रा कर लौटे किसी भी संदिग्ध यात्री को तुरंत आइसोलेट कर सैंपल जांच के लिए पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की बीएसएल-4 सुविधा वाली प्रयोगशाला को भेजे जाएं। हालांकि भारत में अभी तक मंकीपॉक्स से संक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है।

क्या है मंकीपॉक्स?

मंकीपॉक्स एक दुर्लभ और गंभीर वायरल बीमारी है। यह बीमारी एक ऐसे वायरस की वजह से होती है, जो स्मॉल पॉक्स यानी चेचक के वायरस के परिवार का ही सदस्य है।

अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) के मुताबिक, पहली बार ये बीमारी 1958 में सामने आई थी। तब रिसर्च के लिए रखे गए बंदरों में ये संक्रमण मिला था। इन बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण दिखे थे। इसलिए इसका नाम मंकीपॉक्स रखा गया है।

इंसानों में पहली बार कब सामने आई ये बिमारी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में सामने आया था। तब एक 9 साल के बच्चे में ये संक्रमण मिला था। 1970 के बाद 11 अफ्रीकी देशों में इंसानों के मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के मामले सामने आए थे।

नाइजीरिया में हुआ था सबसे बड़ा आउटब्रेक

2003 में पहली बार अमेरिका में इसके मामले सामने आए थे। 2017 में नाइजीरिया में मंकीपॉक्स का सबसे बड़ा आउटब्रेक हुआ था, जिसके 75% मरीज पुरुष थे। सितंबर 2018 में इजरायल और ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए थे। मई 2019 में सिंगापुर में भी नाइजीरिया की यात्रा कर लौटे लोगों में मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई थी।

कैसे फैलती है बीमारी?

  • मंकीपॉक्स किसी संक्रमित जानवर के खून, उसके शरीर का पसीना या कोई और तरल पदार्थ या उसके घावों के सीधे संपर्क में आने से फैलता है।
  • इंसान से इंसान में वायरस के फैलने के मामले अब तक बेहद कम सामने आए हैं। हालांकि, संक्रमित इंसान को छूने या उसके संपर्क में आने से संक्रमण फैल सकता है। इतना ही नहीं, प्लेसेंटा के जरिए मां से भ्रूण यानी जन्मजात मंकीपॉक्स भी हो सकता है।
  • यह वायरस मरीज के घाव से निकलकर आंख, नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। मरीज 7 से 21 दिन तक मंकी पॉक्स से जूझ सकता है।
  • अफ्रीका में गिलहरियों और चूहों के भी मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के सबूत मिले हैं। अधपका मांस या संक्रमित जानवर के दूसरे पशु उत्पादों के सेवन से भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

क्या हैं इसके लक्षण?

    • मंकी पॉक्स के शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं। इनमें बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई लिम्फ नोड्स शामिल हैं।
    • मंकीपॉक्स वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड 5 से 21 दिन तक का हो सकता है। इन्क्यूबेशन पीरियड का मतलब ये होता है कि संक्रमित होने के बाद लक्षण दिखने में कितने दिन लगे।
    • मंकीपॉक्स शुरुआत में चिकनपॉक्स, खसरा या चेचक जैसा दिखता है।
    • बुखार होने के एक से तीन दिन बाद त्वचा पर इसका असर दिखना शुरू होता है। शरीर पर दाने निकल आते हैं। ये दाने घाव जैसे दिखते हैं और खुद सूखकर गिर जाते हैं।

कितनी खतरनाक है ये बीमारी?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मंकीपॉक्स से संक्रमित हर 10वें व्यक्ति की मौत हो सकती है। मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के 2 से 4 हफ्ते बाद लक्षण धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं।
  • जंगल के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों में मंकीपॉक्स का खतरा ज्यादा बना रहता है। ऐसे लोगों में एसिम्टोमैटिक संक्रमण भी हो सकता है।
  • छोटे बच्चों में गंभीर संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। हालांकि, कई बार ये मरीज के स्वास्थ्य और उसकी जटिलताओं पर भी निर्भर करता है।

क्या है इसका इलाज?

  • मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभी मंकीपॉक्स का कोई ठोस इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि, चेचक की वैक्सीन मंकीपॉक्स के संक्रमण के खिलाफ 85% तक असरदार साबित हुई है।
  • अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन (FDA) ने 2019 में इस बीमारी से बचने के लिए Jynneos नाम की वैक्सीन को मंजूरी दी थी। इसे 2013 में ही यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने अप्रूव कर दिया था। हालांकि, वैक्सीन को 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों पर ही इस्तेमाल किया जा सकता है।

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