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मोबाइल एडिक्शन ने बढ़ाया बच्चों में प्री-डायबिटीज, बीपी का खतरा

एग्जाम टाइम में तेजी से सामने आए मामले, 6 से 16 साल के करीब 17 फीसदी बच्चों में दिखी समस्या

भोपाल। बिगड़ती लाइफ स्टाइल बच्चों को बीमार कर रही है। भोपाल के सरकारी और प्रायवेट डॉक्टरों के पास आए केस बताते हैं कि 6 से 16 वर्ष तक के बच्चे भी प्री- डायबिटीज, हाई बीपी के शिकार हो रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, चार माह में औसतन 17 फीसदी बच्चों में इसके लक्षण नजर आए हैं। 30 फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं, जिनमें आने वाले 10 सालों में डायबिटीज होने का खतरा है। एग्जाम टाइम मे ऐसे मामले तेजी से सामने आए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी लगभग बंद होने और मोबाइल एडिक्शन से इस तरह की परेशानियां बढ़ रही हैं। इधर, हमीदिया अस्पताल में हर महीने टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित 4- 5 बच्चे भर्ती होते हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च के यूथ डायबिटीज रजिस्ट्री के 2019 के आंकड़े बताते हैं कि 18 वर्ष से कम आयु के हर 4 में से 1 यानी 25 प्रतिशत बच्चे टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित हैं।

केस-1

भोपाल के आठवीं के एक छात्र की घबराहट को एग्जाम फीयर समझकर माता िपता काउंसलिंग के लिए पहुंचे। वहां पता चला कि उसे हाई बीपी है। दरअसल, बच्चा नियमित रूप से जंक फूड खाने से ओवर वेट है। इस कारण उसका बीपी अनियमित हो रहा है।

केस-2

15 वर्षीय बच्चे को बार-बार प्यास और यूरिन की परेशानी थी। जांच में पता चला कि वह प्री-डायबिटिक है। माता-पिता ने बताया कि बच्चे को गेम का एडिक्शन है। पूरी रात मोबाइल पर गेम खेलता रहता है। चिप्स आदि ज्यादा खाता है।

न करें अनदेखी

किसी का भी शुगर लेवल खाली पेट 125 तक जाने पर इसे प्री-डायबिटिक कहा जाता है। अगर बच्चा किसी तरह की परेशानी बताए तो इग्नोर न करें। डॉ. आरएस मनीराम, असिस्टेंट प्रोफेसर, गांधी मेडिकल कॉलेज

बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी बढ़ाएं। हेल्दी फूड को परिवार का हिस्सा बनाएं। बच्चे की प्रॉपर नींद और आदतों पर ध्यान दें। गैजेटस का आदी न बनाएं और बेवजह के फूड सप्लीमेंट न दें। -डॉ. सारिका गुप्ता, गायनेकोलॉजिस्ट, भोपाल 

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