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अपच को समझ लिया कैंसर, खुद 21 बार कराई एंडोस्कोपी और 50 सोनोग्राफी, 13 डॉक्टर बदले, फिर पता चला मरीज को थी एंजाइटी

इंटरनेट, हेल्थ गैजेट्स का अधिक प्रयोग बना रहा मानसिक बीमार

प्रवीण श्रीवास्तव, भोपाल। 43 साल के किशोर शर्मा (परिवर्तित नाम) लंबे समय से पेट में गैस, अपच और सीने में जलन से परेशान थे। कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी दिक्कत दूर नहीं हो रही थी। इंटरनेट पर पढ़ कर उनके मन में बैठ गया कि कैंसर हो गया। उन्होंने चार साल में बिना डॉक्टरी सलाह के 21 बार पेट की एंडोस्कोपी करा डाली। यही नहीं करीब 50 बार सोनोग्राफी कराने के साथ 13 डॉक्टरों को भी दिखा दिया। अंत में साइकोलॉजिस्ट को दिखाने पर पता चला कि वे मानसिक बीमारी ‘इलनेस एंजाइटी डिसऑर्डर’ से पीड़ित थे।

यह अकेला मामला नहीं है, शहर में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है। इंटरनेट का ज्ञान और हेल्थ वेरिएबल्स की आसान पहुंच लोगों को मानसिक रूप से बीमार बना रही है। लोग थोड़ी-सी दिक्कत होने पर लक्षणों को गूगल पर ढूंढते हैं और भ्रमित हो जाते हैं। अपनी बात साबित करने के लिए बार-बार बीपी, शुगर, ब्लड टेस्ट भी कराते हैं।

डॉक्टर शॉपिंग के बढ़ रहे मामले

जबलपुर की मनोचिकित्सक डॉ. मोनिका वर्मा बताती हैं कि जब इन लोगों को एक डॉक्टर से संतुष्टि नहीं मिलती तो वे दूसरे के पास जाते हैं। कई बार यह संख्या 10 या 15 भी हो जाती है। इस तरह के मामलों को डॉक्टर शॉपिंग नाम दिया गया है। जेपी अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. राहुल शर्मा बताते हैं कि हेल्थ और फिटनेस ट्रैकर एक तरह का एडिक्शन बन गए हैं। वे इन्हें फॉलो करते रहते हैं और तय मानक पूरा न होने पर परेशान हो जाते हैं।

यह बीमारियां भी

  •  हाइपो कॉन्ड्रिया : व्यक्ति को लगता है कि वह बीमार है और डॉक्टर उसकी बीमारी समझने में नाकाम है
  • सोमेटो फॉर्म डिसऑर्डर : व्यक्ति को कई सारी बीमारियों के लक्षण आते हैं, लेकिन वो बीमारी उसे होती नहीं है।
  • एंजाइटी डिसऑर्डर : अनजानी बीमारी के डर से मन में भय, चिंता, घबराहट बढ़ जाती है और मरीज परेशान रहता है।

जब यह मरीज हमारे पास आया तो उसके पास एक दर्जन डॉक्टरों की फाइलें थीं। यही नहीं उसके पास 50 से ज्यादा सोनोग्राफी रिपोर्ट, करीब 21 एंडोस्कोपी और ब्लड रिपोर्ट थीं। उसे लगता था कि उसे कैंसर है। उसे इलनेस एंजाइटी डिसऑर्डर था। कोविड और उसके बाद स्मार्टवॉच, फिटनेस बैंड, फिटनेस ट्रैकर और हेल्थ डिवाइस की डिमांड काफी बढ़ी है। इनके अधिक उपयोग का असर दिमाग पर हो रहा है। – डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक

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