भोपाल। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती के साथ रविवार को महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की जयंती भी थी। वाजपेयी की जयंती पर शहर में कई कार्यक्रम हुए। लेकिन, निगम को मदनमोहन मालवीय की जयंती याद नहीं रही। उनकी प्रतिमा पर फूलमाला चढ़ाना तो दूर, इनकी सफाई तक नहीं की गई। यह हाल तब है, जबकि नगर निगम महापुरुषों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पुण्यतिथि, जयंती पर उनकी प्रतिमाओं और अन्य कार्यक्रमों में फूल-मालाओं के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए हर साल खर्च करता है।
गुमठियों के बीच गुम हुई प्रतिमा
राजधानी में मदनमोहन मालवीय की प्रतिमा डीआईजी बंगला चौराहे पर स्थापित है। यह प्रतिमा गुमठियों के अतिक्रमण से ढंकी हुई है। समाज के लोग ही इसकी साफ-सफाई करते हैं, लेकिन 25 दिसंबर को जयंती वाले दिन इस प्रतिमा की किसी को याद नहीं रही। 25 दिसंबर 2022 को भी प्रतिमा के चारों तरफ पोस्टर चिपके नजर आए। प्रतिमा धूल और पक्षियों की बीट से सनी रही। लेकिन किसी को महामना की याद ही नहीं रही। इधर, जिम्मेदारों को पता ही नहीं है कि मदनमोहन मालवीय की प्रतिमा आखिर स्थापित कहां है।
पहले और अंतिम व्यक्ति, जिन्हें महामना की उपाधि
पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उन्हें भारत की शिक्षा प्रणाली में उनके योगदान और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की। पंडित मदन मोहन मालवीय भारत में स्काउट एंड गाइड के संस्थापकों में से एक थे। 2014 में पंडित मालवीय को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें ‘महामना’ की उपाधि दी थी। यह देश में पहली और आखिरी उपाधि थी। महामना ने ही ‘सत्यमेव जयते’ को देशभर में प्रचलित करवाया था।
मैंने अभी दो दिन पहले ही काम संभाला है, इसलिए मुझे इसकी जानकारी नहीं है। मैं जनसंपर्क के एपीआरओ से जानकारी लेकर तत्काल प्रतिमा की साफ-सफाई सहित अन्य व्यवस्थाएं कराऊंगा।
– आनंद कुमार, उपायुक्त (प्रभारी जनसंपर्क), नगर निगम