
आज देशभर में लोहड़ी का त्योहार मनाया जा रहा है, यह उत्तर भारत का प्रमुख पर्व है। लोहड़ी परंपरागत रूप से किसान परिवारों में सबसे बड़ा उत्सव है। लोहड़ी का यह त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।
लोहड़ी से जुड़ी कुछ बातें-
- सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लाल लोही के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।
- पूरे देश में लोहड़ी का पर्व धार्मिक आस्था, ऋतु परिवर्तन और कृषि उत्पादन से जुड़ा है।
- इस दिन अग्नि देवता को खुश करने के लिए अलाव में गुड़, मक्का, तिल व फूला हुआ चावल जैसी चीजें भी चढ़ाई जाती हैं।
- लोहड़ी के दिन लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं।
- लोहड़ी का यदि शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो ‘ल’ का अर्थ लकड़ी, ‘ओ’ का अर्थ उपले और ‘ड़ी’ का अर्थ रेवड़ी से है। यानि तीनों शब्द के अर्थों को मिला कर लोहड़ी बना है।
पहले इस नाम से जाना जाता था यह त्योहार
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह तिल और गुड़ की रोड़ी से मिलकर बना है। जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से जाने जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
क्या है आग का महत्व?
लोहड़ी से ऐतिहासिक गाथाएं भी जुड़ी हुई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नी सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़क ठंड को कम करने के लिए जलाई जाती है।
किसानों के लिए है विशेष पर्व
पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक विशेष पर्व है। इस अवसर पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इसके अलावा कई हिस्सों में माना जाता है यह त्योहार पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़क ठंड को कम करने के लिए मनाया जाता है।
ईरान में भी मनाई जाती है लोहड़ी!
ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।