
बारिश के मौसम में हरी-पत्तेदार सब्जियां न खाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसमें ऐसे अनगिनत कीड़े होते हैं, जो कि कई बार आंखों से नजर नहीं आते। वहीं बारिश के मौसम में खेत की मिट्टी में नमी आ जाती है जिससे फफूंद जनित रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए हरी सब्जियां खाने से पहले उनकी अच्छी तरह जांच-पड़ताल करने को कहा जाता है। इस मौसम में सब्जियां के पौधे के तने में गलन रोग भी हो जाता है। इस समय फूलगोभी पर काले धब्बे तो, पत्तागोभी का हरा रंग, पीले या भूरे रंग में बदल जाता है। ब्रोकली पर पीलापन और टमाटर में काले छेद और अंदर से सफेदी दिखने लगती है। बारिश के मौसम में अगर बैंगन खा रहे हैं तो काटने से पहले देख लें कि उसकी ऊपरी परत ढीली तो नहीं पड़ी है। वहीं प्याज पर दिखने वाला काले रंग का पाउडर प्याज काटते समय हाथ पर लगता है, तो जान लें कि वो फफूंद है। फूलगोभी को गर्म पानी में उबाल लें ताकि गंदगी व कीड़े हट जाएं। बारिश में फूलगोभी में कीड़े लगे होते है।
मुलायम व पूरी तरह से हरी लौकी ही ताजी
बैंगन का डंठल हरा और ताजा दिखे तो ही खरीदें। काटने पर यह अंदर से सफेद हो तो बैंगन फ्रेश है, लेकिन यदि काटने पर बैंगन अंदर से हल्का भूरा दिखे तो इसका मतलब है कि बैंगन खाने लायक नहीं है, हालांकि बैंगन काटने के थोड़ी देर बाद इसके अंदर का भाग भूरा होता है तो फिर खाया जा सकता है लेकिन यह पहले से अंदर से भूरा दिखे तो न खाएं। लौकी की ऊपरी परत मुलायम है तो यह खाने लायक है, लेकिन यदि इसका निचला हिस्सा रंग सफेद हो गया हो और कड़क हो गई है तो यह ताजी नहीं होती।
सब्जी ताजी न होने पर होता है डायरिया
दरअसल, हवा और सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने से फूलगोभी में बदलाव आता है यानी फेनोल्स और ऑक्सीजन के बीच रिएक्शन से ऐसा होता है। इसमें कोई नुकसान करने वाले कंपाउंड नहीं बनते, इसलिए फूलगोभी पर धब्बे दिखे तो उस हिस्से को काटकर हटा दें, लेकिन यदि फूलगोभी से दुर्गंध आ रही है या जगहज गह छेद हैं तो ऐसी फूलगोभी नहीं खानी चाहिए। अन्यथा उल्टी, डायरिया की शिकायत हो सकती है। मिट्टी में एस्परजिलस नाइजर फफूंद होती हैं, जो प्याज में लग सकती है। घर में टोकरी में रखी प्याज में से कई की ऊपरी परतें काली पड़ जाती है तो समझ जानिए कि ये ब्लैक फंगस है। वहीं सस्ते लहसुन के चक्कर में न पड़े क्योंकि लहसुन की कलियों के बीच में सफेद या काला रंग का धब्बा दिखता है, जो कि फफूंद होती है। -डॉ. रश्मि श्रीवास्तव, न्यूट्रीशनिस्ट