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Holi 2023 : होली पर यहां लड़के पान खिलाकर करते हैं प्रेम का इजहार, लड़की ने खाया पान तो समझो बन गई बात; फिर…

Holi 2023 : भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां पूरे साल अलग-अलग त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाए जाते हैं। वहीं मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल इलाकों में होली पर्व भगोरिया के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर आदिवासी अंचलों में भगोरिया मेले आयोजन होता है, जहां युवक अपने प्यार का इजहार लड़की को पान खिलाकर करता है। अगर युवती की भी हामी होती है तो दोनों का विवाह कर दिया जाता है। जानिए मेले से जुड़ी खास बातें…

भगोरिया मेले में होता है प्रेम का इजहार

इस बार होली का त्योहार दो दिन है। 6 और 7 मार्च को होलिका दहन है और 7 और 8 मार्च को होली (धुरेड़ी) खेली जा रही है। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में भगोरिया मेला हर साल उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस मेले को देखने को लिए कई विदेशी पर्यटक भी आते हैं। भगोरिया मेले की खास बात ये है कि आदिवासी समुदाय के युवक एक खास अंदाज में युवतियों से अपने प्यार का इजहार करते हैं। इस भगोरिया पर्व से जुड़ी खास रस्मों को निभाते हैं। इस दौरान युवाओं को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी आजादी होती है।

लड़की ने पान खाया मतलब लड़का पंसद है

भगोरिया मेले में आदिवासी समुदाय के हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। मेले में कोई युवक किसी लड़की को पान पेश करता है और लड़की उस पान को खा लेती है तो इसका मतलब है कि लड़की भी लड़के को पसंद करती है। इसके बाद दोनों मेले से भाग जाते हैं। इसके बाद वे तब तक घर वापस नहीं आते हैं, जब तक वे उनके माता-पिता उनकी शादी के लिए तैयार नहीं हो जाते हैं। आदिवासी अंचलों में यह मेला प्राचीन काल के स्वयंवर का ही मिलता-जुलता प्रतिरूप है।

फोटो- social media

इसलिए नाम पड़ा भगोरिया

पौराणिक कथाओं के अनुसार, झाबुआ जिले के ग्राम भगोर में एक प्राचीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि इस स्थान पर भृगु ऋषि ने तपस्या की थी। कहते हैं कि हजारों सालों से आदिवासी समाज के लोग भव यानी शिव और गौरी की पूजा करते आ रहे हैं। इसी से भगोरिया शब्द की उत्पत्ति हुई है। किसी समय इस मंदिर में पहले भगवान शिव- पार्वती की पूजा की जाती थी और इसके बाद ही भगोरिया पर्व शुरू होता था।

क्या है भगोरिया मेले की परंपरा ?

मान्यता के अनुसार, भगोरिया मेले की शुरुआत दो भील राजाओं कसुमार और बालुन के समय से मानी जाती है, जिसमें इन दोनों राजाओं ने मिलकर अपनी राजधानी भगोरा में एक मेले का आयोजन किया था। इसके बाद अन्य राजा लगातार इस मेले का आयोजन करने आए और आज यह एक रिवाज बन गया है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भील समाज में लड़के पक्ष को शादी के लिए लड़कियों को दहेज देना पड़ता था और इससे बचने के लिए भगोरिया मेले का आयोजन शुरू किया गया, जिसमें लड़के-लड़कियों की बिना पैसे के शादी कर दी जाती है।

लोगों को पूरे साल रहता है इंतजार

होली के 7 दिन पहले मनाए जाने वाले इस उत्सव का आदिवासी समाज के लोगों को पूरे साल इंतजार रहता है। इन 7 दिनों तक आदिवासी समाज के लोग खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। यह भी कहा जाता है कि देश के किसी भी कोने में काम के लिए गए आदिवासी समाज के लोग भगोरिया पर्व पर अपने गांव लौट आते हैं। हर दिन परिवार के साथ भगोरिया मेले में जाते हैं। भगोरिया मेलों में रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसलिए भगोरिया को उल्लास का पर्व भी कहा जाता है।

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