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कहानियों के जरिए किताबों से कराई स्कूल छोड़ चुके बच्चों की दोस्ती

माध्यम बने ओपन लाइब्रेरी और बाल मेले

पल्लवी वाघेला-भोपाल। बच्चों की किताबों से दोस्ती कराने का सबसे अच्छा जरिया कहानियां हैं। इसी कांसेप्ट पर काम करते हुए शहर की मुस्कान संस्था डीनोटिफाइड कम्यूनिटी मसलन पारदी, गोंड समुदाय के ड्रॉप आउट बच्चों को शिक्षा से जोड़ने बाल मेले आयोजित कर रही है। संस्था ने एक ओपन लाइब्रेरी शुरू की है। इसके तहत 3 साल से बाल मेले आयोजित हो रहे हैं, जिससे बच्चों की किताबों से दोस्ती बढ़े और वे शिक्षा की ओर अग्रसर हों। संस्था 10 साल में 1,177 बच्चों को दोबारा शिक्षा से जोड़ चुकी है।

क्रिएटिविटी बनी बच्चों का इंट्रेस्ट जगाने का माध्यम

मुस्कान संस्था द्वारा ओपन लाइब्रेरी की शुरुआत 2013 में की गई थी। बाल मेले का नवाचार बाद में हुआ। बाल मेले में बच्चों की अभिव्यक्ति को उभारने के लिए स्वतंत्र लेखन, सुनने समझने के कौशल को विकसित करने के लिए स्टोरी टेलिंग और रीड अलाउड, थ्रेड पेंटिंग, ओरिगेमी (पेपर फोल्डिंग की जापानी कला), पपेट शो आदि होते हैं। अभिनय द्वारा कहानी सुनाना, नॉन फिक्शन किताबों से बच्चों को परिचित कराने से वे किताबों में दिलचस्पी लेने लगते हैं।

चाहते हैं कुछ बनना

ओपन लाइब्रेरी से जुड़े कई बच्चे बोर्ड एग्जाम और प्रतियोगी परीक्षा को लक्ष्य बनाए हुए हैं। इनमें से कई पन्नी बीनना व अन्य काम पूरी तरह छोड़ चुके हैं, वहीं कुछ काम व पढ़ाई साथ-साथ कर रहे हैं।

कोविड के बाद बच्चों की शिक्षा पर पड़ा असर नजर आया। लगा कि शिक्षा को मजेदार बनाने से एक सकारात्मक ऊर्जा मिल सकती है। तब बाल मेले की पहल की। -ब्रजेश वर्मा, सदस्य, मुस्कान संस्था

बचपन में कुछ दिन स्कूल गया। पढ़ने में मन नहीं लगा तो कचरा बीनने का काम करता था। 14 साल की उम्र में ओपन लाइब्रेरी से जुड़ा, पढ़ाई में मन लग गया। अब डिसेबल बच्चों की हेल्प के लिए काम करना चाहता हूं। – अरिन सोलंकी (साइकोलॉजिस्ट की ट्रेनिंग ले रहे हैं)

मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। दो साल पहले पहली बार बाल मेले में गई थी, बहुत मजा आया। वो किताबों से कहानी पढ़ाते थे तो किताब पढ़ने का मन होने लगा। अभी कक्षा छठवीं में मेरा एडमिशन हुआ है। -जैनब खान

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