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प्रदेश में पहली बार तालाबों के पास मछुआरों के लिए बनाए निषाद राज भवन

बालाघाट में ‘हमार जीवन, हमार माछरी’ नवाचार : पांच हजार से अधिक मछुआरों को ठंड और गर्मी में खुले में नहीं करना पड़ेगा काम

भोपाल। बालाघाट जिले में नवाचार से 5 हजार से अधिक मछुआरों को सुविधाएं मिलने लगी हैं। ऐसा संभव हुआ ‘निषाद राज भवन’ के बनने से। कलेक्टर डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा ने पिछले साल 100 जलाशयों के पास 277 लाख रुपए खर्च करके निषाद राज भवन बनाने का काम प्रारंभ किया था। ज्यादातर जलाशयों के पास भवन तैयार हो चुके हैं। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है।

मैदानी दौरे से निकला भवन का आइडिया

कलेक्टर डॉ. गिरीश मिश्रा बताते हैं कि 23 मार्च 2022 को क्षेत्रीय स्तर पर मत्स्य पालन की गतिविधियों का निरीक्षण करने निकले थे। यहां मछुआरों ने बताया कि ठंड, गर्मी और बरसात के मौसम में पानी के अंदर उतरकर मत्स्याखेट करते हैं। मत्स्याखेट उपकरण सामग्री, जाल और डोंगी रखने की व्यवस्था नहीं। खाद्य सामग्री रखने की समस्या रहती है। लोकल कार्प मछलियों को सुखाने और मछुआरों के कपड़े रखने की सुविधा नहीं। जलाशय के किनारे मछली रखने और बेचने की सुरक्षित व्यवस्था नहीं। स्वच्छ परिवेश न होने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। समस्याएं जानने बाद निषाद राज भवन बनाने का निर्णय लिया। मछुआरों ने निषाद राज भवन की जानकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बालाघाट दौरे के दौरान दी। उन्होंने इसे सराहा और कहा ऐसे भवन प्रदेश के अन्य जिलों में भी बनने चाहिए।

मछुआरों को ऐसी सुविधाएं पहली बार ही मिली हैं

कटंगझरी मछुआ समिति के बस्ताराम ने बताया कि निषाद राज भवन बनने से उनके स्वास्थ्य अच्छा रहने लगा है। 30 साल में पहली बार इतनी अच्छी सुविधाएं मिलीं हैं। बालाघाट जिले में करीब 10 हजार हेक्टेयर में मत्स्य पालन होता है। करीब दो हजार मछुआरों का रोजगार जुड़ा है। यहां की मछलियां गोंदिया, नरसिंहपुर, मंडला, सिवनी में निर्यात होती हैं। बहगांव निवासी संतलाल शेंडे पिछले कई साल से सिंचाई जलाशय में मछली पालन का व्यवसाय करते हैं। वे बताते हैं कि पहले गर्मी से पसीना- पसीना होना पड़ता था। ठंड में ठिठुरते रहते थे। अब उन्हें जलाशय के पास ही ठहरने के लिए छत मिल गई। गर्मी में पंखे की हवा मिलती है तो रात होने पर लाइट की भी सुविधा। जाल भी बार-बार लाने-ले जाने से निजात मिली।

(इनपुट-पुष्पेन्द्र सिंह)

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