Manisha Dhanwani
31 Aug 2025
नई दिल्ली। हाल ही में लैंसेट की एक स्टडी में भविष्यवाणी की गई है कि साल 2050 तक भारत की तकरीबन एक तिहाई आबादी लगभग 44.9 करोड़ लोग ज्यादा वजन या मोटापे के शिकार होंगे। अध्ययन का अनुमान है कि भारत में 21.8 करोड़ पुरुष और 23.1 करोड़ महिलाएं मोटापे से प्रभावित होंगी। ग्लोबल लेवल पर 2050 तक आधे से अधिक वयस्क और एक तिहाई बच्चे और किशोर ज्यादा वजन या मोटापे से ग्रस्त होने की उम्मीद है। मोटापे में खास तौर से बड़े किशोर (15-24 साल) अलार्मिंग दायरे में हैं। युवा पुरुषों में, मोटापा 1990 में 0.4 करोड़ से बढ़कर 2021 में 1.68 करोड़ हो गया है और 2050 तक 2.27 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
2021 में दुनिया के आधे मोटे वयस्क सिर्फ आठ देशों में रहते थे, जिनमें भारत भी शामिल है। बढ़ते मोटापे, बचपन के कुपोषण और संक्रामक रोगों का कॉम्बिनेशन भारत के हेल्थकेयर सिस्टम पर गंभीर दबाव डाल सकता है। बचपन का अल्पपोषण अक्सर एडल्टहुड में फैट एक्यूमुलेशन की तरफ ले जाता है, जिससे डायबिटीज, हार्ट डिजीज और कुछ कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
मोटापे में इजाफे के पीछे सबसे बड़े फैक्टर्स में से एक नमक, चीनी और फैट से भरपूर प्रोसेस्ड फूड्स की बढ़ती खपत है। मल्टिनेशनल फूड कॉर्पोरेशन और फास्ट-फूड चेन लो और मिडिल इनकम वाले देशों में अपने बाजारों का विस्तार कर रहे हैं, जहां बढ़ती आय और कमजोर नियम अनुकूल वातावरण बनाते हैं। साल 2009 और 2019 के बीच भारत, कैमरून और वियतनाम में अल्ट्रा- प्रोसेस्ड फूड्स और पेय पदार्थों की बिक्री में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। इस संकट से निपटने के लिए बढ़ते मोटापे की महामारी को रोकने के लिए मजबूत नियमों, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों और जागरूकता अभियानों की जरूरत है।