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मप्र की 96 सीटें ऐसी, जहां 33 साल में एक भी महिला को भाजपा-कांग्रेस से टिकट नहीं

33% आरक्षण की चर्चा के बीच मप्र में महिला प्रत्याशियों की स्थिति पर पड़ताल

मनीष दीक्षित- भोपाल। मोदी सरकार ने विधानसभा, राज्यसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए नारी शक्ति वंदन बिल एक्ट बनाया है। महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक) पारित करने के बाद से ही देशभर में इस मुद्दे पर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई। महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के दावों के बीच यह तथ्य चौंकाने वाला है कि पिछले 33 वर्षों में प्रदेश की 96 विधानसभा क्षेत्रों में कोई महिला उम्मीदवार नहीं रही। यह आंकड़ा 100 पार हो जाता, यदि इस बार पांच विधानसभाओं में महिलाओं को उम्मीदवार नहीं बनाया जाता। यदि हम प्रतिशत की बात करें तो लगभग 42 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों में अब तक महिलाओं को मौका नहीं मिला। प्रदेश के दोनों प्रमुख दल, भाजपा और कांग्रेस – इस मुद्दे पर एक जैसे नजर आते हैं। महिलाओं को प्रत्याशी बनाने के बारे में जानने के लिए 1990 से 2023 तक के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की लिस्ट खंगाली गई।

बड़े शहरों में सिर्फ इंदौर जहां महिला प्रत्याशी रहीं

2023 में होने वाला वर्तमान चुनाव 33 वर्षों में होने वाला आठवां विधानसभा चुनाव है। महिला उम्मीदवारों को लेकर ग्वालियर – चंबल, विंध्य, महाकोशल, मालवा निमाड़ के कुछ हिस्सों में हालात प्रदेश के बाकी हिस्सों से बदतर हैं। प्रदेश के चार महानगरों में केवल इंदौर ही है, जहां सभी विधानसभा क्षेत्रों में महिला उम्मीदवार रही हैं। भोपाल की नरेला, मध्य और हुजूर विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस ने किसी महिला उम्मीदवार को नहीं उतारा। यही हाल जबलपुर का है, जहां कैंट, जबलपुर उत्तर और जबलपुर पूर्व से 33 वर्षों में कोई महिला उम्मीदवार नहीं रही। ग्वालियर और ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा की भी यही स्थिति है।

परिवार या व्यक्ति का पर्याय पर महिलाओं को टिकट नहीं

पीपुल्स समाचार ने पिछले तीन दशकों का रिकॉर्ड खंगाला तो यह तथ्य भी सामने आया कि प्रदेश की कई ऐसी सीटें, जो किसी व्यक्ति या परिवार का पर्याय बन गई हैं, वहां भी महिला उम्मीदवारों से परहेज किया गया। चाहे शिवराज की बुधनी विधानसभा हो या कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट! दिग्विजय सिंह परिवार के प्रभाव वाली राघौगढ़ विधानसभा, नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह की लहार, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल चुरहट, सुभाष यादव (अब सचिन यादव) की कसरावद और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह की अमरपाटन से भी दोनों प्रमुख दलों ने महिलाओं को चुनावी समर में नहीं उतारा। यही हाल विजय शाह के प्रभाव वाली हरसूद, राजेंद्र शुक्ला की रीवा, रोहाणी परिवार के प्रभुत्व वाली जबलपुर कैंट, सकलेचा के प्रभाव वाली, जावद, पटवा परिवार की भोजपुर, जयंत मलैया की दमोह या पटेल परिवार की नरसिंहपुर का भी है।

3 महिलाओं ने 4 बार दर्ज की जीत

इन सब के बीच तीन महिला उम्मीदवार ऐसी भी हैं, जो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र से 4 बार जीत दर्ज करने में सफल रही है। इनमें भाजपा की कुसुम मेहदेले पन्ना से चार बार विजयी रही। शिवपुरी से भाजपा नेत्री यशोधरा राजे सिंधिया और महेश्वर से डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ भी चार-चार बार चुनाव जीत चुकीं हैं। खास बात यह भी है कि ये तीनों ही महिला उम्मीदवार अपनी-अपनी सरकारों में मंत्री पद का भी दायित्व निभा चुकीं हैं।

इन क्षेत्रों में महिला उम्मीदवार नहीं

श्योपुर, विजयपुर, जौरा, सुमावली, मुरैना, अटेर, भिंड, भितरवार, सेवढ़ा, गुना, चंदेरी, मुंगावली, बंडा, नरयावली, देवरी, निवाड़ी, महाराजपुर, चंदला, राजनगर, जबेरा, गुन्नौर, चित्रकूट, सतना, तयोंथर, गुढ़ , सिहावल, ब्यौहारी, पुष्पराजगढ़, बिछिया, वारासिवनी, कटंगी, गोटेगांव, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, चौरई, सौंसर, पांढुर्ना, मुलताई, बैतूल, भैंसदेही, हरदा, सिवनी-मालवा, सोहागपुर, पिपरिया, सांची, सिलवानी, आष्टा, इछावर, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर, सुसनेर, हाट पिपल्या, मांधाता, बड़वाह, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर, बड़वानी, थांदला, धरमपुरी, नागदा-खाचरौद, तराना, घट्टिया, बड़नगर, जावरा, आलोट, मंदसौर, मल्हारगढ़, गरोठ, मनासा और नीमच।

50 फीसदी से ज्यादा मतदाता

वैसे तो प्रदेश में महिला मतदाता संख्या लगभग 50 फीसदी है मगर कुछ विधानसभा क्षेत्रों में आंकड़ा 50 फीसदी के पार है। छिंदवाड़ा, वारासिवनी, पुष्पराजगढ़, जौरा, बड़वानी और थांदला ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां 50 फीसदी से अधिक महिला वोटर होने के बावजूद, कांग्रेस या भाजपा ने किसी महिला पर भरोसा नहीं दिखाया।

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