भोपालमध्य प्रदेश

जीआई टैग को लेकर मप्र सरकार के तर्कों से सुप्रीम कोर्ट सहमत, मद्रास हाईकोर्ट को पुनर्विचार के आदेश

मप्र के बासमती चावल को जीआई टैग में मिली बड़ी राहत

पीपुल्स संवाददाता , भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने बासमती चावल को जीआई टैग दिए जाने की मप्र की दलील को स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि मद्रास हाईकोर्ट मामले की पुन: सुनवाई करे और मप्र सरकार के तर्कों को ध्यान में रखकर पुनर्विचार करें।

इस फैसले के बाद बासमती को लेकर मप्र सरकार अपनी लड़ाई जारी रखेगी और किसानों को उनका हक दिलाने की कोशिश करेगी। एपिडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी) ने मप्र के बासमती चावल को जीआई टैग दिए जाने पर 5 फरवरी 2016 को रोक लगा दी थी। उसने कहा था कि मप्र में बासमती पैदा नहीं होता  है। उसने पंजाब तथा दिल्ली को जीआई टैग दे दिया था। मप्र को जीआई टैग नहीं मिलने पर मप्र सरकार ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा था कि जीआई टैग नहीं मिलने से मप्र के किसानों को हानि हो रही है, जबकि दूसरे प्रदेश को लाभ हो रहा है।

मद्रास हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की तो सुप्रीम कोर्ट गई सरकार

मद्रास हाईकोर्ट ने 27 फरवरी को 2020 को मप्र की याचिका को डिसमिस कर दिया था। इस पर मप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोविड के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मप्र को अंतरिम राहत प्रदान की थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने मप्र के तर्कों को स्वीकार करते हुए मद्रास हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वह नए सिरे से मप्र की सुनवाई करे। मप्र सरकार फिर मद्रास हाई कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखेगी। इसके पहले मप्र सरकार ने हाई कोर्ट में तर्क दिया था कि मप्र में बासमती चावल 13 जिलों में पैदा होता है। इन जिलों में मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर तथा नरसिंहपुर शामिल हैं।

प्रदेश में पांच लाख हेक्टेयर में होती है बासमती की खेती

मप्र के इन 13 जिलों में 5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर बासमती की खेती की जाती है। यानी हर वर्ष 12 से 14 लाख मीट्रिक टन बासमती पैदा होता है। प्रदेश की 25 मिलों में बासमती चावल को तैयार किया जाता है।

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