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World Photography Day : भोपाल में कुछ यूं खींचे जाते थे फोटो, पढ़िए दिलचस्प इतिहास

World Photography Day 19 August : भोपाल अपनी समृद्ध कला-संस्कृति के चलते दुनियाभर में विख्यात है। यहां की फोटोग्राफी भी यादगार है। आज भी लोगों कई घरों-महलों, होटलों और संग्रहालयों में यहां के पुराने फोटोज शोभा बढ़ा रहे हैं। एक दिलचस्प जानकारी...

भोपाल। राजधानी भोपाल में फोटोग्राफी का इतिहास नवाब कालीन दौर में अत्यंत गौरवशाली रहा है। उस दौर में भोपाल के जो भी नवाब या जो भी रियासतें रही, उन्हें फोटोग्राफी का शौक रहा। लेखक और जनसंपर्क विभाग के रिटायर्ड अधिकारी प्रलय श्रीवास्तव से सुनिए भोपाल में फोटोग्राफी के किस्से…

नवाबों को भी रहा है फोटोग्राफी का शौक

भोपाल में फोटोग्राफी का इतिहास नवाब कालीन दौर में अत्यंत गौरवशाली रहा है । उस दौर में भोपाल के जो भी नवाब या जो भी रियासतें रही, उन्हें फोटोग्राफी का शौक रहा। फिर वह चाहे 1844 –  1905 के दौरान हैदराबाद के प्रसिद्ध फोटोग्राफर रहे राजा दीनदयाल की प्रेरणा रही हो या फिर अन्य कारण।

यह सच है कि तत्कालीन भोपाल राज्य के नवाबों और रियासतों के कार्यकाल से ही फोटोग्राफी शुरू हुई है। इसके उदाहरण  नवाबों और रियासतों तथा अंग्रेजी हुकूमत के दौर में खींचे गए छायाचित्र के रूप में  आज भी मौजूद हैं, फिर वह चाहे सदर मंजिल के हो या ताजुल मसाजिद के या फिर मोतिया तालाब या फिर बड़ी झील का किनारा या फिर हाथी खाना, जहां हाथी बंधा करते थे।

अंग्रेजी हुकूमत के अफसरान अक्सर भोपाल राज्य का दौरा करने करने आते थे। जब  पहली बार लार्ड मिंटो भोपाल आए तो छोटे तालाब के किनारे दीवान खां  द्वारा बनवाए गए पुल  पुख्ता बांध  से उनका काफिला गुजरा था।  तब पुल पुख्ता को सजाया  संवारा गया था।

हैदराबाद के फोटोग्राफर राजा दीनदयाल ने खींचे यादगार फोटोज

प्रलय श्रीवास्तव कहते हैं कि यह सच है कि हैदराबाद के फोटोग्राफर राजा दीनदयाल ने भोपाल के नवाबों सहित अन्य बड़े राजघरानों में अपने छायाचित्रों से जो पहचान बनाई थी, वह धरोहर के रूप में आज भी उनके वारिसों के पास सुरक्षित है। क्योंकि तत्कालीन भोपाल रियासत ने उन्हें फोटोग्राफी के लिए नियुक्त कर रखा था। उस दौर में वह एकमात्र फोटोग्राफर थे, जो भोपाल रियासत के लिए नियुक्त थे।

1940 से शुरू हुआ भोपाल में फोटोग्राफी का नया युग

आजादी के पहले के दौर में तत्कालीन भोपाल राज्य में कुछ फोटोग्राफर्स की एंट्री साल 1940 में हो चुकी थी। शाहजहानाबाद स्थित रॉयल फोटो स्टूडियो, इब्राहिमपुरा स्थित हरिकृष्ण  जैमिनी का जैमिनी स्टूडियो और पुराने भोपाल का ताज स्टूडियो इसकी मिसाल  है। श्री हरि कृष्ण जैमिनी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू के भोपाल आगमन से लेकर अब तक के दौर के राजनेताओं और प्रमुख हस्तियों के छायांकन का कार्य किया था।

प्रलय श्रीवास्तव आगे कहते हैं कि 1951 में भोपाल विमानतल पर पंडित नेहरू और भोपाल के पत्रकारों के साथ लिया गया  एक श्वेत श्याम छायाचित्र आज भी मेरे  ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रहा है। इस फोटो  में मेरे पिता वरिष्ठ पत्रकार  सत्य नारायण श्रीवास्तव भी है। श्री हरि कृष्ण जैमिनी के पुत्र श्री कमलेश जैमिनी  और राकेश जैमिनी अपने पिता की विरासत को  आज भी संभाले हुए हैं । उनके पास भोपाल के ऐतिहासिक  छायाचित्रों का खजाना मौजूद है।

जनसंपर्क विभाग में कार्यरत रहते हुए मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त हुआ कि 1956 से लेकर 2006 तक के शासकीय फोटोग्राफी के नेगेटिव के डिजिटाइजेशन के महत्वपूर्ण कार्य में मैं भी सहभागी बन सका । शासन के आदेश पर लाखों की तादाद में छायाचित्रों के नेगेटिव को संरक्षित किया गया।

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वामन ठाकरे भोपाल के एकमात्र फोटोग्राफर रहे, जिन्हें पद्मश्री मिला

विगत 50- 60 वर्षों के भोपाल के फोटोग्राफी के इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए, तो पंचायत एवं समाज सेवा  के फोटोग्राफर श्री वामन ठाकरे एकमात्र ऐसे फोटोग्राफर थे, जो अपनी कलात्मक फोटोग्राफी के लिए जाने जाते थे । इतना ही नहीं वह भोपाल के एकमात्र ऐसे फोटोग्राफर भी रहे, जिन्हें पदमश्री की उपाधि से नवाजा गया । पद्मश्री से  अलंकृत होने वाले इंदौर के श्री भालू मोढ़े दूसरे फोटोग्राफर रहे। जनसंपर्क विभाग के अधिकारी रहे  91 वर्षीय जगदीश कौशल 30 साल पहले सेवानिवृत हुए थे। वह आज भी सक्रिय हैं और एक कुशल फोटोग्राफर के रूप में जाने जाते हैं। उनके पास अनेक पुराने छायाचित्रों का संग्रह भी मौजूद है। श्री नवल जायसवाल का भोपाल की फोटोग्राफी को आगे बढ़ाने में योगदान रहा। उन्होंने कई  प्रदर्शनी और वर्कशॉप का आयोजन किया था।  नवल जायसवाल ने बिम्ब एसोसियेशन को भी स्थापित किया था।

भोपाल के चर्चित फोटोग्राफर्स

प्रेस फोटोग्राफर आर.सी साहू ने 40 साल पहले इसी नाम से बुधवारा, चार बत्ती चौराहा पर अपना स्टूडियो शुरू किया था।  एक अन्य रजा मावल भी भोपाल में अपनी कलात्मक फोटोग्राफी के लिए प्रसिद्ध है। शासकीय प्रिंटिंग प्रेस में कार्यरत  रहे फोटोग्राफर गोविंद चौरसिया ने पर्यटन ,संस्कृति, वन्य जीवन, धार्मिक स्थलों के छायांकन में अपनी विशिष्टता स्थापित की  है। मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार के आदेश पर उन्होंने भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों की फोटोग्राफी की।

भोपाल में सबसे पहले फोटोग्राफी का सर्टिफिकेट कोर्स बिड़ला प्राच्य निकेतन में 1980 में शुरू हुआ था। 1981 में  इसी कोर्स को डिप्लोमा इन फोटोग्राफी कर दिया गया। बाद में पॉलिटेक्निक कॉलेज में भी 3 साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू हुआ। वर्तमान में राष्ट्रीय  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में भी फोटोग्राफी का कोर्स जारी है।

प्रलय श्रीवास्तव

(जनसंपर्क विभाग के रिटायर्ड अधिकारी)

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