राष्ट्रीयशिक्षा और करियर

इंजीनियर्स डे आज: डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने चेन पुलिंग कर बचाई थी कई लोगों की जान, जानिए जन्मदिन पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें

नई दिल्ली। भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। इस दिन भारत के महान इंजीनियर और भारतरत्न डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म हुआ था। यूं तो देश में हर साल लाखों इंजीनियर पैदा होते हैं जो मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल, कम्पयूटर, इलक्ट्रॉनिक आदि विषयों के इंजीनियर होते हैं। लेकिन आज से करीब 138 साल पहले एम विश्वेश्वरैया जब इंजीनियर बने थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वे ऐसी मिसाल पेश कर देंगे, जो देश के विकास के लिए प्रेरणा बन कर रह जाएगी।

पढ़ाई में रहे हमेशा अव्वल

भारत सरकार द्वारा साल 1968 में डॉ. एम विश्वेश्वरैया की जन्मतिथि को ‘अभियंता दिवस’ यानि कि इंजीनियर्स डे के रूप में घोषित किया गया था। विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सिंतबर 1860 मैसूर राज्य के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में तेलुगु परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा गांव में पूरी की, जिसके बाद 1880 में बीए की पढ़ाई बेंगलूरु के सेंट्रल कॉलेज से पूरी की। वहीं मैसूर सरकार की मदद से उन्हंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर पहला स्थान हासिल किया।

कर्नाटक की कायापलट

टॉपर होने की वजह से ही विश्वेश्वरैया को महाराष्ट्र सरकार ने सहायक इंजीनियर के पद के लिए चुन लिया। डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने निर्देशन में देश में कई बांध बने, जिसमें मैसूर में कृष्णराज सागर, पुणे का खड़कवासला जलाशय बांध और ग्वालियर का तिगरा बांध खास है। विश्वेश्वरैया ने कर्नाटक को एक नई ऊंचाइयों पर खड़ा कर दिया, उन्हें आज भी कर्नाटक का भगीरथ कहा जाता है। इसके अलावा हैदराबाद शहर की डिजाइन का श्रेय भी डॉ. विश्वेश्वरैया को जाता है। उन्होंने एक बाढ़ सुरक्षा सिस्टम को भी विकसित किया था। समुद्र कटाव से विशाखापत्तनम बंदरगाह की सुरक्षा के लिए खास योजना बनाई थी।

मैसूर सरकार के साथ मिलकर उन्होंने कई कारखानों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की, जिसमें मैसूर साबुन फैक्ट्री, मैसूर आयरन एंड स्टील फैक्ट्री, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, मैसूर चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स और विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग प्रमुख रूप से शामिल हैं।

देश विदेश में मनवाया अपनी विशेषज्ञता का लोहा

सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की आपूर्ति की योजना हो, 1952 में पटना में गंगा नदी पर राजेंद्र सेतु के निर्माण की योजना हो, ग्वालियर का टिगरी डैम हो, उन्होंने हर जगह अपने विशेषज्ञता का लोहा मनवाया। यहां तकि कि मिस्र, अदन, कनाडा, रूस और अमेरिका में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

ट्रेन की चेन खींच बचाई कई लोगों की जान

अंग्रेजों के शासन में एक बार विश्वेश्वरैया ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। जिसमें अधिकांश यात्री अंग्रेज थे। साधारण वेशभूषा में बैठे विश्वेश्वरैया ने अचानक रेल की चेन खींच दी, तो लोग उन्हें खरी खोटी सुनाने लगे। जब विश्वेश्वरैया से इसकी वजह पूछी गई की तो उन्होंने बताया कि उन्हें लगता है कि यहां से एक फर्लांग दूर रेल की पटरी उखड़ी हुई है। जब गार्ड ने उनसे पूछा कि उन्हें यह बात कैसे पता चली, तब विश्वेश्वरैया ने कहा कि गाड़ी की स्वाभाविक आवाज में अंतर आ गया है और पटरी की गूंजने वाली आवाज की गति से उन्हें खतरे का अंदाजा हुआ। जांच करने पर विश्वेश्वरैया की बात सही साबित हुई। लगभग उसी दूरी पर पटरी के जोड़ खुले हुए पाए गए। जब लोगों ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उनके बारे में जानकर अंग्रेज भी हतप्रभ रह गए।

नियोजन पर किताबें

भारत के शुरुआती विकास का आधार रहीं पंचवर्षीय योजनाओं को शुरू करने की प्रेरणा रूस की पंचवर्षीय योजना से ली गई थीं। 1928 में रूस ने ऐसी योजनाएं शुरू की थी। लेकिन उससे 8 साल पहले ही 1920 में विश्वेश्वरैया ने रीकंस्ट्रक्टिंग इंडिया पर इस तरह की योजनाओं का जिक्र किया था। इसके अलावा 1935 में उन्होंने प्लान्ड इकोनॉमी ऑफ इंडिया किताब लिखी।

सम्मान में जारी किया गया डाक टिकट

विश्वेश्वरैया को उनकी लंबी सेहतमंद उम्र के लिए भी जाना जाता है। 92 साल की उम्र में उन्होंने पटना के राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया, 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 98 साल की उम्र में भी वे नियोजन पर किताब लिख रहे थे। सौ साल के होने पर उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया। जिसके बाद 14 अप्रैल 1962 को 101 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।

संबंधित खबरें...

Back to top button