जबलपुरमध्य प्रदेश

22 साल तक भातखंडे संगीत महाविद्यालय के पास नहीं था खुद का भवन, 500 से ज्यादा छात्र हर साल लेते थे प्रवेश

हजारों छात्रों का है इस संगीत महाविद्यालय से भावनात्मक लगाव, इस परिसर को तोड़े जाने का हो रहा विरोध

जबलपुर. भातखंडे संगीत महाविद्यालय के 1947 में गठन के बाद चूंकि इसके पास कोई भवन नहीं था लिहाजा यह करीब 22 साल तक महाराष्ट्र हाई स्कूल व चंचला बाई महाविद्यालय में संचालित हुआ। इसमें हर साल 500 से अधिक छात्र संगीत की  पोस्ट ग्रेजुएट तक की शिक्षा संगीत के विविध विषय के लिए  लेते रहे। पूर्व के पढ़े हजारों छात्र-छात्राएं और वर्तमान छात्र बेहद दुखी हैं कि भावनात्मक लगाव वाले इस परिसर को तोड़ा जाएगा।

दूर-दूर से संगीत सीखने आते थे विद्यार्थी

संगीत महाविद्यालय के गठन के बाद जिले में इसकी ख्याति इतनी बढ़ी कि सतपुला के पास 1950 में इसकी शाखा खोली गई। इसमें उपनगरीय इलाके रांझी खमरिया से लेकर दूरस्थ क्षेत्रों से विद्यार्थी पढ़ने व संगीत सीखने आते रहे। इसे 1970 तक संचालित किया जाता रहा। 1968 में  वर्तमान भवन बनने के बाद शाखा को इसमें मर्ज कर लिया गया। हालांकि, इसकी परीक्षा अभी भी महाराष्ट्र हाई स्कूल में ही संचालित होती है।

महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति को करने होंगे प्रयास

भातखंडे संगीत महाविद्यालय का वर्तमान भवन करीब आधा जो कि रोड से 30 फीट तक की गहराई में जा सकता है। इसके बाद इसमें आधा हिस्सा भी बचना मुश्किल है। भवन का टूटना तय माना जा रहा है मगर अब इसकी मूल संस्था जो कि महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति है की वर्तमान बॉडी का दायित्व बन गया है कि वह अन्यत्र परिसर व भवन के लिए प्रयास करे, तमाम संगीत प्रेमियों, पूर्व व वर्तमान छात्रों और इसके शुभचिंतकों की यही अपेक्षा है।

भातखंडे संगीत महाविद्यालय मध्य भारत का पहला शास्त्रीय नृत्य व संगीत का केन्द्र है। यहां 6 से 70 साल तक उम्र के विद्यार्थी आपको संगीत की शिक्षा लेते मिलेंगे। यहां पर पोस्ट ग्रेजुएट तक की डिग्री मिलती है। यह महाविद्यालय पहले खैरागढ़ यूनिवर्सिटी से एफिलेटेड रहा बाद में छत्तीसगढ़ का गठन होने के उपरांत राजा मान सिंह तोमर यूनिवर्सिटी ग्वालियर से संबद्ध हो गया है। प्रतिवर्ष यहां पर 400 से 500 छात्र-छात्राएं  तबला, हारमोनियम, सितार और शास्त्रीय नृत्य व शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेते हैं। यहां कोई भी पाश्चात्य संगीत या पाश्चात्य नृत्य नहीं सिखाया जाता। हमारी सनातन संस्कृति विधा को भातखंडे संगीत महाविद्यालय सहेज कर रखे हुए है और इसी की शिक्षा दे रहा है। अभी यह संस्था संकट में है। इसका अस्तित्व बचा रहे इसके लिए शासन के जिम्मेदारों को ध्यान देना होगा अन्यथा शास्त्रीय संगीत व नृत्य विधा विलुप्त हो जाएगी।
अमिताभ जैन,मानद सचिव,महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति,संचालक भातखंडे संगीत महाविद्यालय

मैं भातखंडे संगीत महाविद्यालय से सीधे तौर पर तो नहीं जुड़ा हूं मगर यहां मेरा आना जाना 1967-68 से है। मेरा मानना है कि इसका अस्तित्व बचाने के लिए महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति जो कि इसकी मूल संस्था है को प्रयास करने चाहिए। इस परिसर ने संगीत सीखने वाले तमाम छात्र-छात्राओं का भावनात्मक जुड़ाव है,इसे बचाया जाना चाहिए।
मुरलीधर नागराज,प्रख्यात बांसुरी वादक

मैंने गायन की शिक्षा भातखंडे संगीत महाविद्यालय से प्राप्त की है,और इसके टूटने की खबर से बेहद दुखी हूं। मैं आश्चर्य चकित भी हूं कि  यह खबर पहले महाविद्यालय को क्यों नहीं लगी कि फ्लाई ओवर की जद में उसका अस्तित्व आ रहा है अन्यथा पहले से प्रयास शुरू किए जा सकते थे। सरकार से निवेदन है कि कोई इमारत और परिसर इसे संचालित करने दे।
तापसी नागराज,शास्त्रीय गायक कलाकार।

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