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कपड़े की कतरन से फैब्रिक डोकोपेज आर्ट और प्लास्टिक कंटेनर में लगाए हजार पौधे

प्रीति जैन I am Bhopal । प्लास्टिक से लेकर लैंडफील पर जाने वाली कपड़े की कतरन भी पर्यावरण को नुकसान व मिट्टी को दूषित करती है इसलिए पुरानी चीजों के अधिकतम इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। पहले के समय में कपड़े के पुराने हो जाने या किसी नए कपड़े की करतन बच जाने पर उसका इस्तेमाल घर की जरूरत की चीजें बनाने में कर लिया जाता था लेकिन अब ऐसा होता कम ही नजर आता है लेकिन रीसाइकिलिंग और रीयूज के महत्व को समझने वाले लोग इस पर काम कर रहे हैं। कोई कपड़े की कतरन को फेंकने की बजाए उससे फेब्रिक डोकोपेज आर्ट कर रहा है तो कोई प्लास्टिक वेस्ट को रीयूज करके उसमें पौधे लगाकर परिचितों को तोहफे में दे रहा है जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। चीजों के दोबारा इस्तेमाल को लेकर 18 मार्च को ग्लोबल रीसाइकिलिंग डे भी मनाया जाता है।

आर्ट में कप, बुक, डायरी, टी-कोस्टर

फ्रेंच आर्ट डोकोपेज अभी तक कागज पर होता था लेकिन मैं इसे फेब्रिक पर कर रही हूं क्योंकि मेरे पास कपड़े की काफी कतरन एकत्रित हो जाती थी जिसे मुझे लैंंडफील में फेंकना अच्छा नहीं लगता था तो मैंने सोचा क्यों न फैब्रिक डोकोपेज किया जाए और यह इतना खूबसूरत आर्ट बनकर सामने आया कि आज मैं इसे प्रोफेशनली कर पा रही हूं। कपड़े की कतरन को इस आर्ट में कप, बुक, डायरी, टी-कोस्टर, वॉल फ्रेम, वॉल प्लेट, ट्रे, वुडन पीस, बॉक्स सहित लगभग हर चीज पर करती हूं। शाहपुरा में तराश डिजाइन लाउंज में इसे 18-19 मार्च को इसे एग्जिबिट भी कर रही हूं। -तसनीम खान, आर्टिस्ट

प्लास्टिक वेस्ट से बना रहे डिजाइनर प्रोडक्ट्स

टेलर व बुटीक हाउस में बचने वाले कपड़ों की कतरन को इकट्ठा करके नए-नए प्रोडक्ट बनवाती हूं। फैब्रिक टॉयज, बैग, ज्वेलरी, ड्रेस, कुशन कवर आदि की भोपाल में ही नहीं बल्कि जर्मनी, फिनलैंड व यूएसए में भी मांग आ रही है। शहर के कुछ होटल भी कतरन से बने प्रोडक्ट ले रहे हैं। राग भोपाली में फैब्रिक स्क्रैप से ड्रेस बनाई गईं, जिन्हें काफी पसंद किया गया और इस पर फैशन वॉक भी हुई। इसके अलावा सिंगल यूज प्लास्टिक व चिप्स के पैकेट्स को कपड़े के भीतर स्टिच करके भी नए-नए प्रोडक्ट्स तैयार कर रहे हैं ताकि प्लास्टिक व फैब्रिक से पर्यावरण को नुकसान न हो। – पूजा आयंगर, सोशल आंत्रप्रेन्योर

पुराने प्लास्टिक के डिब्बों में लगाए 1000 पौधे

रीसाइकिलिंग और रीयूज पर काम करते हुए हमें लगभग पांच साल हो चुके हैं और कई मंत्रियों से लेकर नगर निगम के अधिकारी हमारे घर इस काम को देखने आ चुके हैं। मेरी पत्नी उर्मिला गुप्ता ने 1000 से ज्यादा पौधे खाली प्लास्टिक की बोटल, शैंपू और पुराने प्लास्टिक के डिब्बों में पौधे लगाए हैं और हम हमेशा इन्हीं प्लास्टिक के डिब्बों में पौधे लगाते हैं ताकि यह यूं ही फेंकने में न चले जाए। हम लोगों को तोहफे में भी किसी प्लास्टिक के बॉक्स या कंटेनर में ही पौधा लगाकर भेंट करते हैं और लोग इस तोहफे की उम्मीद लगाए रहते हैं। साथ ही इतने ही पौधों की खाद भी हम घर से निकले फल-सब्जियों के वेस्ट से ही तैयार करते हैं जो कि रिसाइकिलिंग ही है। -अनिल गुप्ता, सेवानिवृत्त अधिकारी

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