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बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व… 54 दिन में 7 बाघों की मौत, वजह-आपसी संघर्ष

यहां बाघों के लिए चाहिए 1700 वर्ग किमी क्षेत्र, अभी है 1500 वर्ग किमी

उमरिया। बांधवगढ़ नेशनल पार्क इस साल जनवरी से बाघों की मौत को लेकर सुर्खियों में है। यहां 10 जनवरी से 4 मार्च तक 54 दिन में ही 7 बाघों की मौत हो चुकी है। यानी हर 8वें दिन एक बाघ की मौत हुई। जिम्मेदारों का कहना है कि पार्क में बढ़ती हुई बाघों की संख्या के अनुपात में एरिया कम होना इसकी प्रमुख वजह है। इसके लिए काम हो रहा है। सवाल ये है कि यदि एरिया कम हो रहा है और लगातार बाघों के आपसी संघर्ष भी हो रहे हैं तो देरी क्यों हो रही है? सवाल ये भी है कि रिसॉर्ट की संख्या बढ़ने पर ठोस कार्रवाई के लिए अभियान क्यों नहीं चलाया जा रहा। बहरहाल बाघों की मौत का जैसा ग्राफ बांधवगढ़ में है, यदि ऐसा ही बना रहा तो वो दिन दूर नहीं जब सबसे तेजी से किसी पार्क में मरने वाले बाघों का रिकॉर्ड बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के नाम दर्ज हो जाएगा।

इस वर्ष अब तक मौतें

10 जनवरी को पतौर रेंज चिल्हारी बीट में 15 माह के बाघ का कंकाल पाया गया। 16 जनवरी को धमोखर परिक्षेत्र में 15 माह के नर बाघ का शव मिला।23 जनवरी को मानपुर बफर रेंज के पटपरिया हार में एक बाघिन का शव पाया गया। 31 जनवरी को कल्लवाह परिक्षेत्र में बाघ मृत मिला। 29 फरवरी को पनपथा कोर के बघड़ो बीट में बाघ की मौत हुई। 02 मार्च को चपटा पटेरा में मृत बाघ पाया गया। 04 मार्च को पनपथा कोर के बीट हरदी में नर बाघ मृत अवस्था में मिला। (स्रोत : बांधवगढ़ पार्क प्रबंधन)

समय पर इलाज क्यों नहीं ?

बांधवगढ़ में सोमवार को एक बाघ का शव मिला। पार्क प्रबंधन ने बताया कि उक्त बाघ आपसी संघर्ष में घायल हुआ था। 29 फरवरी को पहले बाघ का शव मिला था। 4 मार्च को जो बाघ मिला, वह 29 फरवरी को संघर्ष में घायल हुआ था। यदि बीट पर ही उसे बेहतर इलाज मिल जाता तो शायद बच सकता था। 4 दिन बाद पार्क प्रबंधन का मृत बाघ तक पहुंचना बड़े सवालिया निशान खड़े करता है।

साल भर में 20, दो माह में मिले 7 बाघों के शव :

पार्क प्रबंधन के अनुसार, मार्च 2023 से अब तक 20 बाघों की मौत हुई है। जिसमें विगत दो माह में ही सात बाघों के शव मिले हैं।

15 सौ वर्ग किलोमीटर में 170 से ज्यादा बाघ

डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा ने बताया कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क में बाघों की संख्या 170 से ज्यादा है। प्रति बाघ 10 वर्ग किमी के हिसाब से कम से कम 1,700 वर्ग किमी का एरिया बाघों को चाहिए। जबकि बांधवगढ़ में मानव और टाइगर का एरिया ही कुल मिलाकर 1,500 वर्ग किमी है।

बाघों के विस्थापन को लेकर हम लगातार काम कर रहे हैं। बाघों की मौत मुख्य वजह बाघों की संख्या के अनुपात में एरिया कम होना है। रिसॉर्ट की संख्या पहले से निर्धारित है। नए को बनाने की अनुमति नहीं है। पीके वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर

बांधवगढ़ में बाघों की संख्या ज्यादा होने के कारण क्षेत्र कम पड़ा रहा है।जंगली हाथियों का झुंड लगातार एक्टिव है और बांधवगढ़ के बफर और उमरिया वन मंडल में जमकर वनाधिकार के पट्टे बांटे गए हैं। इन तीनों बातों से वहां के बाघ डिस्टर्ब हो गए। -अजय दुबे, वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट 

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