
रवींद्र भवन में आकाशवाणी भोपाल और संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित ‘स्वर उत्सव’ कार्यक्रम की शुरुआत शहर के युवा संगीतकार उमेश तरकसवार के निर्देशन में गायक- गायिकाओं ने फारसी में लिखे देशभक्ति गीत ‘मां तुझे सलाम’ के साथ की। उन्होंने अन्य देशभक्ति गीत भी पेश किए। इसके बाद शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत राग गौड़ मल्हार से की, जिसमें उन्होंने दो रचनाएं प्रस्तुत कीं।
इनमें एक विलंबित रचना तिलवाड़ा ताल में निबद्ध पारंपरिक बंदिश थीं और दूसरी मध्य लय रचना त्रिताल में निबद्ध थी। राग सरस्वती कल्याण में स्वयं रचित दो रचनाएं पेश कीं, जो कि रूपक और त्रिताल में निबद्ध थी और प्रस्तुति का समापन स्वयं रचित राग मिश्र मांड में संगीतबद्ध एक दादरा से किया। तबले पर अनीस प्रधान और हारमोनियम पर सुधीर नायक ने संगत की। कार्यक्रम में यशवंत चिवंडे, राजेश भट भी उपस्थित रहे।
‘गाईये गणपति जग वंदन…’
पद्मश्री उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मोहम्मद हुसैन ने अपनी परफॉर्मेंस से श्रोताओं को दाद देने और झूमने को मजबूर कर दिया। उन्होंने सबसे पहले भजन ‘गाईये गणपति जग वंदन’ प्रस्तुत किया। देशभक्ति गीत ‘ये हिंद, ये मेरा वतन’ से श्रोताओं के मन में देशप्रेम की भावना जगा दी। इसके बाद उन्होंने ‘जो भी तुझे ए जाने वफा भूल गए हैं…’ सहित कई गजलें सुनाईं।
भारतीय संगीत को सुनने के लिए दर्शक वेस्टर्न की तरह उदारता दिखाते तो अच्छा लगता
भारतीय कलाएं, शिल्प आदि के लिए न कोई अभियान चलाया गया, न कोई खजाने लुटाए गए। लोगों का यह हाल है कि वेस्टर्न म्यूजिक का कोई कलाकार, बैंड आदि भारत में प्रस्तुति के लिए आए तो हजारों रुपए का टिकट खरीदने में नहीं हिचकते। यह सुनकर अच्छा लगता है। यही उदारता वे पारंपरिक भारतीय संगीत के प्रति भी दिखाते तो और भी अच्छा लगता। यह बात शास्त्रीय संगीत गायिका शुभा मुद्गल ने आईएम भोपाल के साथ विशेष चर्चा में कही। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय गायन को बढ़ावा देने के लिए सैटेलाइट वर्ल्ड स्पेस रेडियो के रूप में नवाचार किया गया था। यह 24 घंटे शास्त्रीय गायन का प्रसारण करता था, जिसके लिए सालाना 500 रुपए का सब्सक्रिप्शन चार्ज था। लोगों ने पैसा नहीं दिया और वो बंद हो गया। उन्होंने कहा कि बचपन में हमारे एक पिल्ले का देहांत हो गया था। सुमित्रानंदन पंत जी हमारे घर आए तो मैं उदास बैठी हुई थी, तब उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा जी के यहां से एक कुत्ता दिलवा देंगे। हम पंत जी के साथ उनके यहां पहुंचे तो महादेवी जी ने मना कर दिया, तो मैं रोने लगी। बाद में महादेवी जी खुद हमारे घर आईं और कुत्ता हमें सौंप दिया।