
वासिफ खान/ भोपाल। देशभक्ति की परिभाषा को अगर कोई मूर्त रूप में साकार करता है, तो इसका जीता जागता उदाहरण सैनिक है। वह देशप्रेम के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देता है, एक ऐसे उद्देश्य के लिए जिसे वो जानता है कि ये उससे कहीं बड़ा है। ये बात भारतीय सेना के मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्क्षी ने अपनी नई किताब ‘कल्कि तू कहां है’ की चर्चा के दौरान पीपुल्स समाचार से खास बातचीत में कही।
जीडी बख्क्षी वैदिक काल के आह्वान के लिए भोपाल को चुनते हैं। उनके मुताबिक, इसके लिए सबसे जरूरी है कि वेदों का ज्ञान बच्चों को सर्वप्रथम उनके घरों पर ही दिया जाए। साथ ही, हिंदू धर्म के तमाम ग्रंथों और अपनी सभ्यता के प्रति जागरुक किया जाए। वह अध्यात्म और राष्ट्रभक्ति को एक ही पंक्ति में रखते हैं। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। बिना अध्यात्म के देशभक्ति और बिना देशभक्ति के अध्यात्म को नहीं निभाया जा सकता है। इसके लिए वे अर्थवेद में वर्णित देशप्रेम के मूल्य को बताते हुए कहते हैं, जब तक हमारे मूल्यों की आधारशिला एक ऐसी चीज पर नहीं टिकती जो हमसे बड़ी और सर्वोपरि है, तब तक मूल्यों में भटकाव होता रहेगा।
उन्हें विचारों की यह प्रेरणा उन्हें उनके गुरू स्वामी प्रणवानंद सरस्वती से मिली। जिसकी शुरूआत 1974 में, अजंता-अलोरा की गुफाओं के पास स्थित घने वन में उनसे मिली मंत्र दीक्षा के रूप में हुई और वो सेवा के दौरान मिलने वाली छुट्टियों में उन्हीं के पास जाया करते थे।
उनके मार्गदर्शन ने उन्हें आनंद की अनुभूति कराई। इस अनुभूति में प्राकृतिक सौंदर्य का अहम योगदान रहा। इसके लिए आज हर गांव में एक तपोवन, हर कस्बे में दस तपोवन और हर महानगर में सौ तपोवन की शुरुआत की जाए और इसके लिए जापान की मियावाकी पद्धति का इस्तेमाल किया जाए। उनकी पुस्तक में ‘कल्कि’ का अभिप्राय पुनर्जागरण की चेतना के अवतरण से है और यह सवाल भी है कि आखिर वो चेतना कहां है! हालांकि, उनका मानना है कि इस चेतना कि उदय होता दिख रहा है और इसमें मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी का विशिष्ट योगदान है।
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