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गोद लेना आसान, प्रदेश में 1 साल में 183 बच्चों को मिला नया आशियाना

􀂄 देश में आंकड़ा 4009 􀂄 नियमों और प्रक्रिया में बदलाव से आया फर्क, अब लग रहा आधा समय

पल्लवी वाघेला- भोपाल। कभी समाज से डरी हुई मां ने मुझे नाजायज मानते हुए सड़क पर मरने छोड़ दिया, तो कभी अन्य कारण से माता-पिता का हाथ सिर से हट गया। हारकर शायद दुनिया को अलविदा कह देती, या पूरा जीवन आश्रय गृह में बीत जाता। लेकिन, तभी ममता भरे हाथों ने मुझे संभाल लिया। अब मैं अनाथ बच्ची से किसी के घर की बेटी बन गई हूं। यह केवल एक बच्ची नहीं, बल्कि उन हजारों बच्चों की सुखद कहानी है जिन्हें इस साल गोद दिया गया।

कोरोना की आहट के बीच बीते पांच सालों में वित्तीय वर्ष 2023-24 में बच्चों के एडॉप्शन नंबर में इजाफा देखा गया है। एक्सपर्ट का मानना है कि प्रक्रिया में बदलाव और देशभर में बच्चों से जुड़ी अहम संस्थाओं की सक्रियता इसके पीछे बड़ा कारण है। दस साल पहले सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी यानी कारा ने खुद इस बात को स्वीकारा था कि कानूनी तौर पर गोद लेने के बारे में लोगों को जानकारी न होना और जटिल प्रक्रिया के चलते अनेक दंपति इसमें रुचि नहीं लेते। बीते सालों में बढ़ी जागरुकता और नियमों में बदलावों से आश्रय गृह में रह रहे बच्चों को गोद लेने का आंकड़ा बढ़ता नजर आ रहा है।

कम होने के बाद बढ़े आंकड़े

कारा के अनुसार साल 23-24 में पूरे देश से भारत और विदेशी परिवारों द्वारा 4,009 बच्चों को गोद लिया गया है। मप्र में भी 183 बच्चे गोद दिए गए हैं। इस समयावधि में भोपाल से कुल 17 बच्चे गोद गए, जिनमें 7 को विदेशी परिवारों ने अपनाया है। साल 2018-19 में देश में एडॉप्शन का आंकड़ा 4027 था, इसके बाद यह लगातार कम हुआ, लेकिन इस साल यह फिर से पहले वाले स्तर को छूता नजर आ रहा है। इसका कारण नियमों में बदलाव है।

सितंबर 22 से लागू नया नियम

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक सितंबर 2022 से दत्तक ग्रहण संबंधी नया नियम लागू कर दिया गया। इसके तहत अब स्थानीय कोर्ट के बजाए जिला मजिस्ट्रेट बच्चा गोद लेने के लिए आदेश दे सकता है। जानकारों के मुताबिक पहले यदि कोई परिवार बच्चा गोद लेना चाहता था तो उसे अमूमन ढाई से तीन वर्ष का समय लगता था। इससे कई परिवार कानूनी प्रक्रिया को बीच में छोड़ देते थे। अधिकार डीएम के पास आने के बाद यह वक्त करीब आधा हो गया है।

दत्तक ग्रहण पिछले वर्ष बढ़ा है। इसके दो मुख्य कारण नजर आते हैं। पहले जो बच्चों को गोद देने का कोर्ट ऑर्डर होता था, वो सिविल कोर्ट में जाता था और सीआरपीसी लागू होकर चलता था। इससे प्रोसेस डिले हो जाता था। अब बच्चों का कोर्ट ऑर्डर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी कलेक्टर के माध्यम से सीधे होता है। इससे गति मिली है। साथ ही बाल आयोग ने भी निरंतर प्रयास किया है कि आश्रय गृह में रह रहे बच्चों के जैविक माता-पिता होने पर उनका परिवार में पुनर्वास हो सके। अन्यथा नियम अनुसार, उन्हें लीगल फ्री कर दत्तक ग्रहण में दिया जाए, ताकि वह जल्द से जल्द समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके और बच्चों को संस्थाओं में न रहना पड़े। इस कारण भी एडॉप्शन की संख्या बढ़ी है। – अनुराग पांडेय, सदस्य, मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग

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