धर्म

Kartik Purnima 2021: आज है कार्तिक मास की पूर्णिमा, जानें पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

कार्तिक पूर्णिम पर इस बार सर्वार्थसिद्ध महायोग बन रहा है। हर महीने शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में आ जाता है तो वह तिथि पूर्णिमा कहलाती है। कार्तिक मास की पूर्णिमा का विशिष्ट महत्व माना गया है, क्योंकि इस दिन काशी में देव दिवाली भी मनाई जाती है। पूर्णिमा तिथि पर दान, स्नान और पूजन का विशेष महत्व होता है। पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा के साथ भगवान विष्णु के पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा में या तुलसी के पास दीप जरूर जलाने चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर राक्षस का अंत किया था। इसी खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी। यह परंपरा आज भी देव दीपावली के रूप में जानी जाती है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्री हरि विष्णु का पूजन करने से सौभाग्य प्राप्त होता है।

तुलसी पूजन के पीछे का कारण

शास्त्रों में तुलसी के पौधे को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जिस घर में तुलसी होती है वहां पर मां लक्ष्मी का वास होता है। तुलसी का पौधा घर में आने वाली नेगेटिव एनर्जी को रोकने के साथ-साथ रोगों के नाश करने में भी मदद करता है। पुराणों के अनुसार जिस घर पर कोई विपत्ति आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है या सूख जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि आरंभ- 18 नवंबर 2021 दोपहर 12:00 बजे से
  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 नवंबर 2021 दोपहर 02:26 पर
  • कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय- 17:28:24

कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि

  • कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली भी होती है इसलिए इस दिन शाम को किसी नदी, सरोवर या धर्म स्थान पर दीपदान अवश्य करना चाहिए।
  • कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्ममुहुर्त में किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए या घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें।
  • व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु के समक्ष शुद्ध देसी घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।
  • अब तिलक करके धूप-दीप, फल, फूल वह नैवेद्य से विधिवत् पूजन करें।
  • शाम को पुनः भगवान विष्णु का पूजन करें, उन्हें देसी घी में भूनकर बनाया गया आटे का सूखा कसार और पंचामृत चढ़ाएं।
  • विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी का भी पूजन व आरती करें।
  • चंद्रमा निकलने के बाद अर्घ्य दें और फिर व्रत का पारण करें।

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