
प्रीति जैन, भोपाल। हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन कौन सी नदी अमृत के समान दिखती है। मुझे लगता है नदियां मैला ढोती रहेंगी तो अमृत महोत्सव नहीं हो सकता। हम दुनिया को सिखाने की बात करते हैं। लेकिन हम उस लायक बचे कहां हैं। यह बात वॉटरमैन राजेंद्र सिंह ने कही। वे भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (IIFM)के 42 वें स्थापना दिवस समारोह में स्टूडेंट्स व फैकल्टी से मुखातिब थे।
उन्होंने कहा- हम मंदिरों में पत्थर के भगवान को पूजते हैं, ठीक है, लेकिन पहले तो हम पेड़-पौधों को भी तो पूजते थे। 100 साल पहले हम पानीदार देश थे, जहां का जंगल पानी को धीमा करके उसे रोक लेता था। कोविड महामारी आई, लेकिन इसका वायरस पहले से था। यह जंगल ही थे जो कि इसे ह्यूमन बॉडी पर अटैक करने से रोके रखते थे। जंगलों के साथ मानवीय रिश्ते को जोड़कर ही हम बीमारियों को रोक सकते हैं।
दुनियाभर में क्लाइमैटिक इमरजेंसी
राजेंद्र सिंह ने कहा- अब राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में स्थानीय ज्ञान व तकनीक को अपनाकर जलाशयों व भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए काम हो रहे हैं। क्लाइमैटिक इमरजेंसी आ चुकी है। अफ्रीका, एशिया और मिडिल ईस्ट की उन जगहों से विस्थापन शुरू हो चुका है, जहां पानी की किल्लत है। लोग यूरोप जा रहे हैं, उन्हें क्लाइमैटिक रिफ्यूजी कहा जा रहा है। यही विस्थापन तीसरे विश्वयुद्ध की वजह बनेगा जो पानी को लेकर होगा।
विकास के नाम पर ‘विनाश’ न हो
उन्होंने कहा कि साइंस और टेक्नोलॉजी को इंटीग्रेट करना होगा, ताकि साइंस से कॉमन सेंस पैदा हो और अंधाधुंध विकास के नाम पर विनाश न हो। पर्यावरण का विनाश होगा तो विस्थापन होगा। जब तक दुनिया पंच महाभूतों के महत्व को नहीं जानेगी मानव सभ्यता को बचाना मुश्किल बना रहेगा। नीर(जल), नारी(प्रकृति) व नदी को सहेजना होगा। जहां नदी खत्म हुई वहां एक सभ्यता पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
हजारों लीटर पानी सहेजता है पीपल
जब पीपल का पेड़ 40 साल का हो जाता है, तब वह अकेला बारिश के 8 हजार लीटर पानी को अपनी जड़ों में सहेजने की क्षमता रखता है। पेड़ ही है, जो पानी को भूमिगत करेंगे, लेकिन जब जंगल ही नहीं रहेगा तो पानी की रफ्तार को धीमा करके कौन रोकेगा।
पढ़े-लिखे लोग नदियों को नाला बना रहे
आजादी के समय देश के तीन ही राज्यों में बाढ़ आती थी, लेकिन अब 9 राज्यों में बाढ़ आती है। सूखा 3 से 4 राज्यों में होता था। अब 17 राज्यों में सूखे की स्थिति निर्मित होती है। मुंबई में नदियों का रिकॉर्ड नाले के रूप में दर्ज था, जिसमें मैंने ठीक कराया और देखा कि जहां जितना पढ़ा-लिखा आदमी होता है वहां सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है। पढ़े-लिखे लोग ही नदियों को नाला बनाते हैं।
वॉटरमैन ने यह भी कहा
- जंगल की सेहत है तो हमारी सेहत ठीक रहेगी।
- नेचर को चश्मा लगाकर विकास की योजनाएं बनाएं।
- नदी की जियोलॉजी व टाइपोलॉजी को समझें।
- स्थानीय व पारंपरिक ज्ञान से हर जगह की समस्या को समझकर उपाय करें।
- कम्युनिटी को जोड़कर ही जंगल बचा सकते हैं, यह अकेले सरकार के बस की बात नहीं।
- खेती व बारिश को लिंक करके फसले तैयार करें।
- नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए नेचुरल डैम पर काम करें।
कौन हैं राजेंद्र सिंह
6 अगस्त 1959 को यूपी के बागपत में जन्मे राजेंद्र सिंह जल संरक्षण के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे हैं। वर्ष 2001 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार फॉर कम्युनिटी लीडरशिप और वर्ष 2015 में स्कॉटहोम वॉटर पुरस्कार दिया गया। यह जल संरक्षण के क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार के रूप में जाना जाता है।
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