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शशि थरूर का इमरजेंसी पर प्रहार, बताया लोकतंत्र के लिए चेतावनी; बोले- नसबंदी अभियान ने गरीबों को बनाया शिकार

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने साल 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह घटना दिखाती है कि आजादी कैसे धीरे-धीरे छीनी जाती है, और लोग इसे समय रहते समझ नहीं पाते। उन्होंने यह बात एक लेख में कही, जो ‘प्रोजेक्ट सिंडीकेट’ में प्रकाशित हुआ है।

डर और दमन का दौर था आपातकाल

थरूर ने लिखा कि इंदिरा गांधी के सत्तावादी रवैये ने उस समय के सार्वजनिक जीवन को डर और दबाव में डाल दिया था। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे कदमों से लोगों की आजादी छीनी गई और धीरे-धीरे देश अनुशासन के नाम पर दमन की ओर बढ़ गया।

संजय गांधी की नीतियों पर भी सवाल

थरूर ने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस अभियान में गरीब और ग्रामीण लोगों को निशाना बनाया गया, जहां जबरदस्ती और हिंसा के जरिए मनमाने लक्ष्य पूरे किए गए।

हजारों लोग हुए बेघर

थरूर ने यह भी बताया कि दिल्ली जैसी जगहों पर झुग्गियों को जबरन गिराया गया जिससे हजारों लोग बेघर हो गए। सरकार ने उनके पुनर्वास या कल्याण की कोई चिंता नहीं की।

लोकतंत्र की संस्थाएं भी विफल रहीं

शशि थरूर ने लिखा कि आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक संस्थाएं बहुत कमजोर साबित हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने भी नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करने के बजाय सरकार के सामने झुकाव दिखाया।

प्रेस, कार्यकर्ता और विपक्षी नेता जेल में

थरूर ने कहा कि उस समय पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्ष के नेता जेलों में डाले गए। हिरासत में लोगों को प्रताड़ित किया गया, और कई जगहों पर बिना कानूनी प्रक्रिया के हत्याएं तक हुईं।

आज का भारत पहले से मजबूत, लेकिन खतरे बाकी

थरूर ने यह भी कहा कि आज का भारत पहले से अधिक आत्मविश्वासी और मजबूत लोकतंत्र है, लेकिन आपातकाल की चेतावनियां आज भी उतनी ही जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि सत्ता केंद्रित करना, आलोचना को दबाना और संविधान की अनदेखी करना आज भी लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है।

थरूर के तीन बड़े सबक

  • सूचना की आजादी और स्वतंत्र प्रेस जरूरी हैं।
  • न्यायपालिका को कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने की ताकत होनी चाहिए।
  • बहुमत में आई अहंकारी सरकार लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

लोकतंत्र के लिए चेतावनी

थरूर ने अंत में कहा कि आपातकाल की घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए नागरिकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए और सत्ता पर नजर बनाए रखनी चाहिए।

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