
अहमदाबाद। केंद्रीय गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बुधवार को अपने रिटायरमेंट को लेकर एक विशेष घोषणा की। उन्होंने कहा कि जब वे सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेंगे, तब अपना समय प्राचीन भारतीय ग्रंथों वेद और उपनिषद के अध्ययन में बिताएंगे और प्राकृतिक खेती को अपनाएंगे। शाह ने इसे सिर्फ एक आध्यात्मिक या पारंपरिक कार्य नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रयोग बताया, जिससे जीवन में अनेक लाभ होते हैं।
रासायनिक खादों से हो रही बीमारियां
उन्होंने कहा कि रासायनिक खादों से उपजे अन्न को खाने से लोगों को कैंसर, बीपी और शुगर जैसी गंभीर बीमारियां हो रही हैं। वहीं प्राकृतिक खेती के उत्पाद केमिकल फ्री होते हैं, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है और दवाइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शाह ने दावा किया कि प्राकृतिक खेती से उत्पादन भी बढ़ता है। उनके अपने खेत में भी नेचुरल फार्मिंग होती है, जहां उपज में लगभग डेढ़ गुना की वृद्धि दर्ज की गई है।
एक गाय के गोबर से 21 एकड़ खेती
अमित शाह ने प्राकृतिक खेती की विशेषताओं को विस्तार से बताते हुए कहा कि इसकी सफलता के लिए किसी बड़े संसाधन की आवश्यकता नहीं होती। एक गाय ही पर्याप्त होती है, जिसके गोबर से तैयार जैविक खाद से 21 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस पद्धति में मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखने के लिए केंचुए अहम भूमिका निभाते हैं। ये केंचुए किसी भी रासायनिक उर्वरक जितना ही कार्य करते हैं।
शाह ने यह भी बताया कि बारिश के समय खेतों में जलभराव नहीं होता, क्योंकि जमीन की संरचना में सुधार होता है। इस खेती से न केवल लागत कम होती है, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरती है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगी।
सरकारी समर्थन से कोऑपरेटिव मॉडल को मिलेगा बल
अमित शाह ने यह भी घोषणा की कि भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कोऑपरेटिव की स्थापना की है। इन कोऑपरेटिव्स के माध्यम से न केवल देश में केमिकल-फ्री अनाज की खरीद होगी, बल्कि इसका निर्यात भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आने वाले आठ से दस वर्षों में इसका टेस्टिंग और प्रमाणीकरण शुरू हो जाएगा और अमूल मॉडल की तरह इसका भी लाभ किसानों को मिलेगा।
बचपन की यादें साझा कीं
कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने अपने बचपन के कठिन दिनों को याद करते हुए बताया कि जब वे पैदा हुए थे, तब गुजरात के बनासकांठा और कच्छ जैसे जिलों में पानी की इतनी किल्लत थी कि सप्ताह में एक बार ही स्नान के लिए पानी उपलब्ध होता था। उन्होंने कहा कि आज वही इलाके इतने आत्मनिर्भर हो गए हैं कि गांवों के परिवार सालाना एक करोड़ रुपए से अधिक की कमाई कर रहे हैं। यह परिवर्तन सहकारिता और स्वावलंबन के रास्ते पर चलकर संभव हुआ है।
महिलाओं की सफलता की कहानियों ने बटोरा ध्यान
सहकार संवाद कार्यक्रम में गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सहकारी महिला कार्यकर्ताओं ने अपनी कहानियाँ साझा कीं। गुजरात की मीरल बहन ने बताया कि उनके समूह में 360 परिवार ऊंटनी के दूध के व्यापार से जुड़े हैं और इससे अच्छी आमदनी हो रही है। उन्होंने इस क्षेत्र में रिसर्च की आवश्यकता जताई, जिस पर शाह ने बताया कि तीन संस्थान पहले से इस पर कार्य कर रहे हैं।
राजस्थान की सीमा ने बताया कि उन्होंने अपने महिला समूह की बचत से 2.5 करोड़ रुपए जमा किए हैं, जिससे अब पशुपालन और खेती जैसे छोटे व्यापार शुरू किए गए हैं। वहीं, मध्य प्रदेश की रूचिका परमार ने जानकारी दी कि वे खाद और ऋण वितरण जैसे कार्यों के माध्यम से सालाना 15 करोड़ रुपए की आमदनी कर रही हैं। उन्होंने मैरिज गार्डन खोलने की इच्छा जताई, जिस पर शाह ने भरोसा दिलाया कि योजना का ब्यौरा देने पर उन्हें लोन दिलवाया जाएगा।