
नई दिल्ली। दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन को लेकर एक बार फिर भारत और चीन के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। ताजा विवाद उस बयान से शुरू हुआ जिसमें 14वें दलाई लामा ने कहा था कि उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ तिब्बती बौद्ध गुरुओं को है। इसके जवाब में भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने कहा कि दलाई लामा अकेले यह तय नहीं कर सकते कि पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी या नहीं। उन्होंने इसे 700 साल पुरानी धार्मिक और ऐतिहासिक परंपरा बताया।
चीन का सख्त रुख, कहा- उत्तराधिकारी के लिए चाहिए चीनी मंजूरी
चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए लिखा कि दलाई लामा की पुनर्जन्म की परंपरा 700 वर्षों से चलती आ रही है। उन्होंने कहा, “14वें दलाई लामा इस परंपरा का हिस्सा हैं, लेकिन यह ना तो उनसे शुरू हुई थी और ना ही उन्हीं पर खत्म होगी। इस परंपरा को जारी रखने या बंद करने का अधिकार सिर्फ उनके पास नहीं है।”
चीन का स्पष्ट कहना है कि भविष्य में दलाई लामा के उत्तराधिकारी को तभी मान्यता मिलेगी जब वह चीन सरकार की मंजूरी से नियुक्त किया जाए और प्रक्रिया में चीनी कानूनों, धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं का पालन हो।
धार्मिक मामलों में नहीं हस्तक्षेप नहीं करता भारत
दलाई लामा के बयान के बाद जब चीन ने आपत्ति जताई तो भारत ने भी संयमित लेकिन स्पष्ट प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार आस्था और धार्मिक मामलों में किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं करती। यह भारत की स्थायी नीति है और आगे भी ऐसी ही बनी रहेगी।
हालांकि, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने दलाई लामा का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें अपने उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार है। उनके इस बयान पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई और भारत को तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर सावधानी बरतने की सलाह दी।
दलाई लामा बोले- 40 साल और जीवित रहूंगा
विवाद के बीच दलाई लामा ने भी स्पष्ट किया है कि उन्हें अभी जीवन के कई वर्ष और मिलने की आशा है। धर्मशाला में एक दीर्घायु प्रार्थना सभा के दौरान उन्होंने कहा, “प्रभु की कृपा से मैं 130 वर्ष तक जीवित रहूंगा और बुद्ध धर्म के प्रचार और जीवों की सेवा करता रहूंगा।”
इससे पहले, उन्होंने पुनर्जन्म की इच्छा भी जाहिर की थी और कहा था कि वह फिर से जन्म लेंगे ताकि मानवता और धर्म की सेवा कर सकें।