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इंदौर-देवास रोड पर लगा 8 किमी लंबा जानलेवा जाम, 3 की मौत, 32 घंटे तक फंसी रही 4000 गाड़ियां

इंदौर। इंदौर-देवास रोड पर शुक्रवार को 8 किलोमीटर लंबे जाम ने जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया। इस भयावह स्थिति में तीन लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद प्रशासनिक अमला नींद से जागा। इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने तुरंत आपात बैठक बुलाई और संबंधित विभागों को फील्ड में उतरने के सख्त निर्देश दिए। इसके बाद पुलिस, प्रशासन, होमगार्ड, वॉलंटियर्स और आसपास के गांवों से आए युवाओं ने मिलकर जाम खुलवाने की कोशिश शुरू की।

अर्जुन बड़ौद के पास हालात फिर भी बिगड़े

हालांकि डकाच्या से आगे आधा किमी तक ट्रैफिक कंट्रोल अमला तैनात है, लेकिन अर्जुन बड़ौद के पास करीब डेढ़ किलोमीटर का हिस्सा अब भी जाम से जूझ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि कई एम्बुलेंस और वाहन चालक वहां पहुंचने से पहले ही रास्ता बदलने को मजबूर हो रहे हैं। शनिवार रात भी कई वाहन अर्जुन बड़ौद के पास घंटों फंसे रहे।

फ्लैग और सिटी बजाकर हो रही गाइडेंस

भीषण जाम से निपटने के लिए प्रशासन ने तीन वैकल्पिक मार्गों पर ट्रैफिक डायवर्ट किया है। डकाच्या और बायपास टोल टैक्स नाके से आगे पुलिस, ट्रैफिक और होमगार्ड के जवान सड़कों पर हाथ में फ्लैग और सिटी लेकर यात्रियों को सही दिशा में भेज रहे हैं। बड़े वाहनों को मुख्य मार्ग से ही भेजा जा रहा है, जबकि छोटे वाहन सर्विस रोड से निकाले जा रहे हैं।

बारिश ने बढ़ाई परेशानी

शनिवार देर रात हुई हल्की बारिश के कारण कई जगहों पर ट्रैफिक कंट्रोल कर रही टीमें अस्थायी रूप से पीछे हट गईं। लेकिन जैसे ही बारिश रुकी, टीमें फिर से सक्रिय हो गईं और व्यवस्था को संभालने में जुट गईं। इस दौरान टोल से लेकर अर्जुन बड़ौद तक के करीब 19 किमी क्षेत्र में बड़े वाहनों को कहीं भी खड़ा नहीं होने दिया गया।

एम्बुलेंस चालकों में डर

अर्जुन बड़ौद के पास जब शनिवार रात 8 बजे जाम गहराया, तो बीच में फंसी एक एम्बुलेंस को जैसे-तैसे रास्ता बनाकर निकलना पड़ा। इससे पहले शुक्रवार को दोपहर में इसी मार्ग पर दो पक्षों के बीच झगड़ा हो गया था। विवाद के दौरान एम्बुलेंस को फोन किया गया, लेकिन जब वह मौके पर पहुंची, तो गुस्साए लोगों ने उसकी ओर दौड़ लगा दी। इससे एम्बुलेंस चालक घबरा गया और वह रॉन्ग साइड से वापस लौट गया।

प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल

जाम से हुई मौतों के बाद प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। हालात बिगड़ने के बाद ही अफसरों और नेताओं ने सक्रियता दिखाई। अगर समय रहते कदम उठाए जाते, तो तीन जानें बचाई जा सकती थीं।

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