
बाराबंकी। ईरान और इजराइल के बीच चल बीते कुछ दिनों युद्ध जारी रहा। जहां एक ओर इजराइल और अमेरिका ने ईरान पर लगातार हमले किए, वहीं ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने कहा कि हम किसी भी हाल में सरेंडर नहीं करेंगे और इजराइल से आखिरी जीत तक लड़ते रहेंगे। इस बीच सोशल मीडिया पर यह दावा किया जाने लगा कि अयातुल्ला खामेनेई का संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से है। हालांकि, यह दावा तथ्यों से परे है। बाराबंकी का रिश्ता दरअसल ईरान के पहले सुप्रीम लीडर अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी से जुड़ा है, न कि खामेनेई से।
इस युद्ध के बीच भारत में अयातुल्ला खामेनेई की लेकर भी खूब चर्चा हुई। इसकी वजह थी उनका यूपी के बाराबंकी से एक ताल्लुक। बहुत कम लोगों को पता होगा कि यूपी के बाराबंकी का ईरान से बहुत पुराना कनेक्शन है। 1978 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो उसके अगुवा रूहोल्लाह खुमैनी थे। रूहुल्लाह खुमैनी के दादा सैयद अहमद मूसवी बाराबंकी के गांव किंतूर के रहने वाले थे। उनका जन्म यहीं हुआ था।
बाराबंकी के किंतूर गांव से था खुमैनी के पूर्वजों का संबंध
ईरान की इस्लामी क्रांति के अगुवा रूहोल्लाह खुमैनी के दादा सैयद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सिरौलीगौसपुर तहसील स्थित किंतूर गांव में हुआ था। बताया जाता है कि उन्होंने 40 वर्ष की उम्र में इराक की धार्मिक यात्रा की और फिर वहां से ईरान पहुंच गए। बाद में वे ईरान के एक गांव खुमैन में बस गए, जो उनके परिवार के नाम की पहचान बन गया। यही से खुमैनी उपनाम की शुरुआत हुई।
हिंदी उपनाम से मशहूर हुए खुमैनी के दादा
कहा जाता है कि ईरान में बसने के बाद सैयद अहमद मूसवी ने अपने नाम के साथ हिंदी उपनाम जोड़ा, जिससे वे अपनी भारतीय जड़ों को सम्मान देते रहे। ईरान में उन्हें सैयद अहमद मूसवी हिंदी के नाम से जाना गया। खुमैनी के परिवार की यह विरासत ईरान की धरती पर भी कायम रही और बाद में उन्हीं के पोते रूहोल्लाह खुमैनी ने ईरान के इतिहास को एक नया मोड़ दिया।
खुमैनी ने दी इस्लामी क्रांति को दिशा
1902 में जन्मे रूहोल्लाह खुमैनी ने धर्म और दर्शन में गहरी रुचि ली। वे ईरान में पहलवी शासन के कड़े विरोधी थे। उनके विरोध के कारण उन्हें देश निकाला दिया गया और एक अखबार ने उन्हें भारत का एजेंट तक कह दिया। इसके बाद जनता उनके समर्थन में सड़कों पर उतर आई और अंततः 14 वर्षों के निर्वासन के बाद खुमैनी ईरान लौटे। 1979 में इस्लामी क्रांति के सफल होने पर वे ईरान के पहले सर्वोच्च नेता (सुप्रीम लीडर) बने।
खामेनेई का कोई सीधा संबंध नहीं है भारत से
1989 में खुमैनी के निधन के बाद अयातुल्ला अली खामेनेई ने ईरान की बागडोर संभाली। खामेनेई ने ईरान के संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन करवाए। हालांकि, खामेनेई का कोई पारिवारिक या भौगोलिक संबंध भारत या बाराबंकी से नहीं रहा है। सोशल मीडिया पर जो दावे किए जा रहे हैं, वे खुमैनी और खामेनेई के नामों की समानता की वजह से भ्रमित करने वाले हैं।