
जब प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है, तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है और इसे करने से भक्तों को दोगुना पुण्य फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा से करने पर सभी दुखों का अंत होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए जानें सोम प्रदोष व्रत से जुड़ी एक प्रेरणादायक कथा।
सोम प्रदोष व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मणी अपने छोटे पुत्र के साथ रहती थी। पति के निधन के बाद उसका जीवन कठिन हो गया था। वह रोज सुबह अपने बेटे के साथ भिक्षा मांगने निकलती और जो भी थोड़ा-बहुत अन्न मिलता, उसी से दोनों का गुजारा चलता।
एक दिन, भिक्षा से लौटते समय ब्राह्मणी को रास्ते में एक घायल युवक मिला। वह दर्द से कराह रहा था। ब्राह्मणी का हृदय द्रवित हो उठा और उसने उसे अपने घर ले जाकर सेवा करना शुरू कर दी। उसने न केवल उसकी मरहम-पट्टी की, बल्कि मां जैसा स्नेह भी दिया।
कुछ दिनों बाद जब वह युवक स्वस्थ हुआ, तब उसने अपना परिचय दिया। वह विदर्भ राज्य का राजकुमार था। उसके राज्य पर आक्रमण हुआ था, पिता को बंदी बना लिया गया था और वह किसी तरह जान बचाकर भागा था। अब उसके पास कुछ भी नहीं था, सिवाय इस ब्राह्मणी की छाया के।
ब्राह्मणी की श्रद्धा : सोम प्रदोष व्रत
ब्राह्मणी हर सोमवार को सोम प्रदोष व्रत करती थी। वह भगवान शिव की सच्ची भक्त थी और अपने व्रत को ही जीवन का आधार मानती थी। उसकी सेवा, तपस्या और श्रद्धा से राजकुमार भी प्रभावित हुआ।
अंशुमति से मिला प्रेम और वरदान
उसी नगर में अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या रहती थी। एक दिन उसने राजकुमार को देखा और मन ही मन उससे प्रेम करने लगी। उसने अपने माता-पिता को बताया। जब वे राजकुमार से मिले तो वे भी उसकी गरिमा और चरित्र से प्रभावित हुए।
रात्रि में भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह इसी राजकुमार से करें। अगली सुबह उन्होंने श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा कर दोनों का विवाह करवा दिया।
शिव कृपा से राज्य की पुनर्प्राप्ति
विवाह के बाद, ब्राह्मणी के व्रत के पुण्य प्रभाव और गंधर्वों की सहायता से राजकुमार ने अपनी सेना दोबारा संगठित की। उसने विदर्भ राज्य पर चढ़ाई की, पिता को बंदीगृह से मुक्त कराया और अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
ब्राह्मणी बना राजमाता, पुत्र बना प्रधानमंत्री
राजकुमार ने अपने जीवन की इस सफलता का श्रेय ब्राह्मणी को दिया। उसने ब्राह्मणी को राजमाता और उसके पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बना लिया। उसके बाद वह जीवनभर हर सोमवार को सोम प्रदोष व्रत करता रहा।
कथा से क्या सीख मिलती है?
यह कथा बताती है कि यदि सच्ची श्रद्धा, सेवा और भक्ति से भगवान शिव की उपासना की जाए, तो जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियां भी आसान हो जाती हैं। ब्राह्मणी की भक्ति ने एक अजनबी को फिर से राजा बना दिया और स्वयं उसके जीवन में भी सुख-समृद्धि लौटा दी।
सोम प्रदोष व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाने देते। यह कथा हमें निःस्वार्थ सेवा, भक्ति, और धैर्य का सजीव उदाहरण देती है।
हर हर महादेव!