
जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने 4 साल की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के मामले में दोषी को बड़ी राहत देते हुए उसकी फांसी की सजा को 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया है। यह निर्णय जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की डिवीजन बेंच ने दिया।
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि दोषी निरक्षर और आदिवासी पृष्ठभूमि का है, उसे बचपन में सही मार्गदर्शन और शिक्षा नहीं मिली, जिसके चलते वह गलत संगत में पड़ गया और यह जघन्य अपराध कर बैठा। अदालत ने इस आधार पर फांसी की सजा को कठोर कारावास में परिवर्तित कर दिया।
खेत की झोपड़ी से मासूम को उठाया था
यह मामला खंडवा जिले का है, जहां 30 और 31 अक्टूबर 2022 की रात को 4 साल की मासूम अपने परिजनों के साथ खेत में बनी झोपड़ी में सो रही थी। रात में अचानक बच्ची गायब हो गई। परिजन की तलाश के बाद वह घर के पास बने आम के बगीचे में मरणासन्न हालत में मिली। प्राथमिक उपचार के बाद बच्ची को खंडवा से इंदौर रेफर किया गया, जहां कई दिनों तक इलाज चला और उसकी जान बच सकी।
राजकुमार ने किया था अपहरण और हत्या का प्रयास
पुलिस जांच में पता चला कि राजकुमार (20) जो एक ढाबे में काम करता था, वह बच्ची को झोपड़ी से उठाकर सुनसान इलाके में ले गया। वहां दुष्कर्म किया और फिर गला घोंटकर मारने का प्रयास किया। बच्ची को मरा समझकर उसने उसे झाड़ियों में फेंक दिया और मौके से फरार हो गया।
स्निफर डॉग ने खोला राज, 24 घंटे में हुआ गिरफ्तार
परिजन की शिकायत पर पुलिस ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया। स्निफर डॉग के जरिए जांच जब ढाबे तक पहुंची, तो वहां से राजकुमार के लापता होने की बात सामने आई। मोबाइल लोकेशन ट्रैक कर आरोपी को 24 घंटे में गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में उसने जुर्म कबूल कर लिया और वही लोकेशन बताई जहां बच्ची को छोड़ा था। बच्ची बेहोश थी, लेकिन सांसें चल रही थीं, उसे तुरंत जिला अस्पताल और फिर इंदौर रेफर किया गया।
डीएनए रिपोर्ट बनी सजा का आधार
ट्रायल कोर्ट में अभियोजन पक्ष ने डीएनए रिपोर्ट को सबसे बड़ा सबूत बताया, जिससे यह साबित हुआ कि दुष्कर्म हुआ था और हत्या का प्रयास किया गया था। हालांकि, बचाव पक्ष का तर्क था कि प्रत्यक्षदर्शी नहीं हैं और डीएनए के अलावा कोई अन्य साक्ष्य नहीं है। अदालत ने वैज्ञानिक साक्ष्य को आधार मानते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट ने कहा- अपराध गंभीर, लेकिन फांसी जरूरी नहीं
राजकुमार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने माना कि चार साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या का प्रयास एक क्रूर और जघन्य अपराध है। लेकिन आरोपी की पारिवारिक, सामाजिक और मानसिक स्थिति को देखते हुए यह सजा बहुत कठोर है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी को अच्छी परवरिश, शिक्षा और सामाजिक मार्गदर्शन नहीं मिला और वह गलत संगति में पड़ गया था।
हाईकोर्ट का फैसला
फांसी की सजा को 25 साल की कठोर सश्रम कारावास में बदला गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस अपराध को हल्के में नहीं लिया जा सकता, लेकिन दोषी को सुधार का अवसर मिलना चाहिए।
फैसले से पीड़िता के परिजन आहत
इस फैसले के बाद पीड़ित परिवार में आक्रोश है। उनका कहना है कि इतनी छोटी बच्ची के साथ हुई इस निर्मम वारदात में आरोपी को मौत की सजा मिलनी चाहिए थी। सामाजिक संगठनों और महिला आयोगों ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और राज्य सरकार से सुप्रीम कोर्ट में अपील की मांग की है।