
दमोह। दमोह मिशन स्कूल के प्राचार्य अजय मसीह की घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। किसी तरह उन्होंने पहली से छठवीं तक की पढ़ाई गांव में की और सातवीं कक्षा में दमोह में दाखिला लिया। सातवीं से 11 वीं तक की शिक्षा मिशन स्कूल से प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए पैसों की व्यवस्था नहीं थी तो मजदूरी की। मजदूरी के हर दिन ढाई रुपए मिलते थे। इसके साथ एमए तक शिक्षा पूरी की। इसके बाद वर्ष 1984 में 180 रुपए सैलरी पर अनुदान प्राप्त स्कूल में अस्थायी शिक्षक की नौकरी मिली। वे बताते हैं कि आर्थिक समस्याओं के बीच तीन बेटियों और बेटे को पढ़ाया। आज तीनों बेटियां सरकारी सेवा में हैं और बेटा पीचएडी कर रहा है। वर्ष 1965 में जन्मे अजय बताते हैं कि नौकरी के बीच मैंने डीपीएड (पीटीआई), एलएलबी, बीएड किया, परंतु इनके जीवन में कठिनाई का दौर ज्यादा रहा।
एक बेटी को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला
अजय मसीह के अनुसार, आज एक बेटी अनुकृति एमएससी करने बाद बीएमसी सागर में स्टाफ नर्स है। दूसरी बेटी साक्षी ने एलएलबी आॅनर्स और एलएलएम में टॉप किया। इसके लिए वर्ष 2018 में उसे राष्ट्रपति से सम्मान मिला। वह वर्तमान में झाबुआ में सिविल जज के पद पर है। तीसरी बेटी एकता ने एम. कॉम करने के बाद एमपी और सीजी से स्टेट लेवल एलिजिबिलिटी टेस्ट पास की। इसके बाद वह राज्य लोक सेवा आयोग की सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2018 में चयनित हुई और वर्तमान में स्थानीय पीजी कॉलेज में पदस्थ है। बेटा इवांजय ने वर्ष 2022 में डॉ. एचएस गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र विषय में टॉप किया और वर्तमान में पीएचडी कर रहा है। अजय मसीह का कहना है कि चारों बच्चे व्यवस्थित हो गए इससे बड़ा सुख मेरे लिए और कुछ नहीं है। मैंने संघर्ष किया ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी न रहे। इसके साथ ही अपने सभी बच्चों को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया।